अष्ट कर्मों से रहित, कृतकृत्य, जन्म—मृत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकल तत्त्वार्थ के द्रष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें। सिद्धात्मा निर्विकल्पोऽप्रतिहतमहिमा शश्वदानन्दधाम।
सिद्ध परमात्मा समस्त विकल्पों से रहित, अबाधित महिमा से पूर्ण और शाश्वत आनन्द से युक्त होते हैं। निरौपम्यविच्छिन्नं स देव: परमेश्वर:। तत्रैवास्ते स्थिरीभूत:, पिबन् शश्वत् सृखामृतम्।।
वे सिद्ध परमेश्वर देव अनुपम, अक्षय, शाश्वत सुखामृत का पान करते हुए सिद्धलोक में ही स्थिर होकर रहते हैं (वहां से उनका पुनरागमन नहीं होता)। कममलविप्रमुक्त:, ऊध्र्वं लोकस्यान्तमधिगम्य। स सर्वज्ञानदर्शी, लभते सुखमनिन्द्रियमनन्तम्।।
कर्ममल से विमुक्त जीव ऊपर लोकान्त तक जाता है और वहाँ वह सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी के रूप में अतीन्द्रिय अनन्त सुख भोगता है। चक्रकुरुफणिसुरेन्द्रेषु अहमिन्द्रिे यत् सुखं त्रिकालभवम्। तत: अनन्तगुणितं, सिद्धानां क्षणसुखं भवति।।
चक्रवर्तियों को, उत्तरकुरु, दक्षिणकुरु आदि भोगभूमि वाले जीवों को तथा फणीन्द्र, सुरेन्द्र एवं महमिन्द्रों को त्रिकाल में जितना सुख मिलता है, उन सबसे भी अनन्तगुणा सुख सिद्धों को एक क्षण में अनुभव होता है। अलाबु च एरण्डफलमग्निधूमइषुर्धर्नुिवप्रमुक्त:। गति: पूर्वप्रयोगेणैवं, सिद्धानामपि गतिस्तु।।
जैसे मिट्टी से लिप्त तुम्बी जल में डूब जाती है और मिट्टी का लेप दूर होते ही ऊपर तैरने लगती है। अथवा जैसे एरण्ड का फल धूप से सूखने पर फटता है तो उसके बीज ऊपर को ही जाते हैं। अथवा जैसे अग्नि या धूम की गति स्वभावत: ऊपर की ओर होती है और जैसे धनुष से छूटा हुआ बाण पूर्व—प्रयोग से गतिमान होता है, वैसे ही सिद्ध जीवों की गति भी स्वभावत: ऊपर की ओर होती है। अट्टविहकम्मवियला, णिट्ठियकज्जा पणट्ठसंसारा। दिट्ठसयलत्थसारा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु।।
अष्ट कर्मों से रहित, कृतकृत्य, जन्म—मृत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकल तत्त्वार्थों के द्रष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें। जावद्धम्मं दव्वं, तावं गंतूण लोयसिहरम्मि। चेट्ठंति सव्वसिद्धा, पुह पुह गयसित्थमूसगब्भणिहा।।
लोक के शिखर पर जहाँ तक धर्म द्रव्य की सीमा है, वहां तक जाकर सभी मुक्त जीव पृथक््â—पृथक््â स्थित हो जाते हैं। उनका आकार मोहरहित मूषक के आभ्यन्तर आकाश की भाँति अथवा घटाकाश की भाँति चरम शरीर वाला तथा अर्मूितक होता है। अट्ठविहकम्मवियडा, सीदीभूदा णिरंजना णिच्चा। अट्ठगुणा कयकिच्चा, लोयग्गणिवासिणो सिद्धा।।
सिद्ध अष्ट कर्मों से रहित, सुखमय, निरंजन, नित्य, अष्टगुण सहित तथा कृतकृत्य होते हैं और सदैव लोक के अग्रभाग में निवास करते हैं।