नील पर्वत के केसरी नामक सरोवर के दक्षिण द्वार से सीता नामक उत्तम नदी निकलती है। यह भी सीतोदा के समान ही सीता कुण्ड में गिरकर दक्षिण मुख होती हुई दो कोस प्रमाण से मेरु पर्वत को छोड़कर पूर्व की ओर मुड़ जाती है और माल्यवंत गजदंत पर्वत की दक्षिण मुख वाली गुफा में प्रवेश करके गुफा से बाहर निकलकर कुटिल रूप से मेरु पर्वत के मध्य भाग तक जाती है। उस मेरु के मध्य को अपना मध्य प्रदेश प्रणिधि करके यह सीता नदी पूर्व विदेह के ठीक बीच से पूर्व की ओर जाती है। अनंतर जम्बूद्वीप की जगती के बिलद्वार में से जाकर परिवार नदियों से युक्त होती हुई लवण समुद्र में प्रवेश करती है। सीता नदी का विस्तार एवं वन उपवन आदि का वर्णन सीतोदा के सदृश है।
नील पर्वत के दक्षिण में १००० योजन जाकर सीता के दोनों पार्श्व भाग में दो यमक गिरि पर्वत स्थित हैं। सीता के पूर्व में चित्रकूट और पश्चिम में विचित्रनाम का कूट है। इनका वर्णन यमक और मेघगिरि के सदृश है।