सीदाए उत्तरदो दीओववणस्स वेदिपच्छिमदो।
णीलाचलदक्खिणदो पुव्वंते पोक्खलावदीविसए१।।२३१५।।
चेट्ठदि देवारण्णं णाणातरुसंडमंडिदं रम्भं।
पोक्खरणीवावीिह कमलुप्पलपरिमलिल्लाहिं।।२३१६।।
तस्सिं देवारण्णे पासादा कणयरयणरजदमया।
वेदीतोरणधयवडपहुदीिह मंडिदा विउला।।२३१७।।
उप्पत्तिमंचियाइं अहिसेयपुरा य मेहुणगिहाइं।
कीडणसालाओ सभासालाओ जिणणिकेदेसुं।।२३१८।।
चउविदिसासुं गेहा ईसािणदस्स अंगरक्खाणं।
दिप्पंतरयणदीवा बहुविहधुव्वंतधयमाला।।२३१९।।
दक्खिणदिसाविभागे तिप्परिसाणं पुराणि विविहाणिं।
सत्ताणमणीयाणं पासादा पच्छिमदिसाए।।२३२०।।
किब्बिसअभियोगाणं सम्मोहसुराण तत्थ दिब्भागे।
वंदप्पाण सुराणं होंति विचित्ताणि भवणािंण।।२३२१।।
एदे सव्वे देवा तेसुं कीडंति बहुविणोदेिह।
रम्मेसु मंदिरेसुं ईसािणदस्स परिवारा।।२३२२।।
सीदाय दक्खिणतडे दीवोववणस्स वेदिपच्छिमदो।
णिसहाचलउत्तरदो पुव्वाय दिसाए वच्छस्स।।२३२३।।
देवारण्णं अण्णं चेट्ठदि पुव्वस्स सरिसवण्णणयं।
णवरि विसेसो देवा सोहम्मिंदस्स परिवारा।।२३२४
सीतानदी के उत्तर, द्वीपोपवनसंबन्धी वेदी के पश्चिम, नील पर्वत के दक्षिण और पुष्कलावती देश के पूर्वान्त में नाना वृक्षों के समूहों से मण्डित तथा कमल व उत्पलों की सुगन्ध से संयुक्त ऐसी पुष्करिणी एवं वापिकाओं से रमणीय देवारण्य नामक वन स्थित है।।२३१५-२३१६।।
उस देवारण्य में सुवर्ण, रत्न व चाँदी से निर्मित तथा वेदी, तोरण और ध्वजपटादिकों से मण्डित विशाल प्रासाद हैं।।२३१७।।
इन प्रासादों में उत्पत्तिमंचिका (उपपाद शय्या), अभिषेकपुर, मैथुनगृह, क्रीडनशाला, सभाशाला और जिननिकेत (जिनमंदिर) स्थित हैं।।२३१८।।
चारों विदिशाओं में प्रदीप्त रत्नदीपकों से सहित और बहुत प्रकार की फहराती हुई ध्वजाओं के समूहों से सुशोभित ईशानेन्द्र के अंगरक्षक देवों के गृह हैं।।२३१९।।
दक्षिण दिशा भाग में तीनों पारिषद देवों के विविध भवन और पश्चिम दिशा में सात अनीकदेवों के प्रासाद हैं।।२३२०।।
उसी दिशा में किल्विष, आभियोग्य, संमोहसुर और कन्दर्प देवों के विचित्र भवन हैं।।२३२१।।
द्वीपोपवनसम्बन्धी वेदी के पश्चिम, निषधाचल के उत्तर और वत्सादेश की पूर्वदिशा में सीता नदी के दक्षिण तट पर पूर्वोक्त देवारण्य के सदृश वर्णन वाला दूसरा देवारण्य भी स्थित है। विशेष केवल इतना है कि इस वन में सौधर्म इन्द्र के परिवार देव क्रीडा करते हैं।।२३२३-२३२४।।