
सिद्धीकन्या के नाथ सुदर्शन सेठ परम आराध्य बने।
गंगा का शीतल जल केवल तन की ही प्यास बुझाता है।




फूलों की सुरभी घ्राणेन्द्रिय को सदा सुहानी लगती है। 
हलवा बरफी पूरनपोली खाकर सब तृप्ती करते हैं।


घर को सुरभित करने हेतू मलयागिरि धूप जलाते हैं। 
अंगूर आम बादाम आदि तन को सम्पुष्ट तो करते हैं। 




जैवन्त हों जिनधर्म के सिद्धान्त जगत में।