तर्ज—चाँद मेरे आ जा रे…….
आरती सुमति जिनेश्वर की, सुमति प्रदाता,
मुक्ति विधाता, त्रैलोक्य ईश्वर की।।टेक.।।
इक्ष्वाकुवंश के भास्कर, हे स्वर्णप्रभा के धारी।
सुर, नर, मुनिगण ने मिलकर, तव महिमा सदा उचारी।।आरती….।।१।।
साकेतपुरी में जन्मे, माता सुमंगला हरषीं।
जनता आल्हादिक मन हो, आकर तुम वन्दन करती।।आरती…।।२।।
श्रावण शुक्ला दुतिया को, प्रभु गर्भकल्याण हुआ है।
फिर चैत्र शुक्ल ग्यारस को, सुरपति ने न्हवन किया है।।आरती….।।३।।
वैशाख शुक्ल नवमी तिथि, लौकान्तिक सुरगण आए।
सिद्धों की साक्षीपूर्वक, दीक्षा ले मुनि कहलाए।।आरती….।।४।।
निज जन्म के दिन ही प्रभु को, केवल रवि प्रगट हुआ था।
इस ही तिथि शिवरमणी ने, आ करके तुम्हें वरा था।।आरती….।।५।।
सम्मेदशिखर की पावन, वसुधा भी धन्य हुई थी।
देवों के देव को पाकर, मानो कृतकृत्य हुई थी।।आरती….।।६।।
उस मुक्तिथान को प्रणमूं, नमूं पंचकल्याणक स्वामी।
‘‘चंदनामती’’ तुम आरति, दे पंचमगति शिवगामी।।आरती….।।७।।