सोमणसब्भंतरए पुव्वादिचउदिसासु चत्तारो।
पुव्वं व सयलवण्णणवित्थारो तेसु णादव्वो१।।१९६८।।
पत्तेक्वं जिणमंदिरसालाणं बाहिरम्मि चेट्ठंति।
दोपासेसुं दोद्दो वूडा णामा वि ताण इमे।।१९६९।।
णंदणणामा मंदरणिसहहिमा रजदरुजगणामा य।
सायरचित्ता वज्जो पुव्वादिकमेण अक्खादा।।१९७०।।
पणवीसब्भहियसयं वासो सिहरम्मि दुगुणिदो मूले।
मूलसमो उच्छेहो पत्तेक्वं ताण वूडाणं।।१९७१।।
१२५। २५०। २५०। वूडाणं मूलोवरिभागेसुं वेदियाओ दिव्वाओ।
वररयणविरइदाओ पुव्वं पिव वण्णणजुदाओ।।१९७२।।
वूडाण उवरिभागे चउवेदीतोरणेिंह रमणिज्जा।
णाणाविहपासादा चेट्ठंते णिरुवमायारा।।१९७३।।
पण्णरससया दंडा उदओ रुंदं पि कोसचउभागो।
तद्दुगुणं दीहत्तं पुह पुह सव्वाण भवणाणं।।१९७४।।
१५००। को १। १। वासो पणघणकोसा तद्दुगुणा मंदिराण उच्छेहो।
लोयविणिच्छयकत्ता एवं माणे णिरूवेदि।।१९७५।।
वूडेसुं देवीओ कण्णकुमारीओ दिव्वरूवाओ।
मेघंकरमेघवदी सुमेधया मेघमालिणी तुरिमा।।१९७६।।
तोअंधरा विचित्त पुप्फयमाला यिंणदिदा चरिमा।
पुव्वादिसु वूडेसुं कमेण चेट्ठंति एदाओ।।१९७७।।
बलभद्दणामवूडो ईसाणादिसाए तव्वणे होदि।
जोयणसयमुत्तुंगो मूलम्मि व तत्तिओ वासो।।१९७८।।
१००। १००। पण्णासजोयणाइं सिहरे वूडस्स वासवित्थारो।
मुहभूमीमिलिदद्धं मज्झिमवित्थारपरिमाणं।।१९७९।।
एस बलभद्दवूडो सहस्सजोयणपमाणउच्छेहो।
तेत्तियरुंदपमाणो दिणयरिंबबं व समवट्टो।।१९८०।।
१०००। १०००। सोमणसस्स य वासं णिस्सेसं रुंभिदूण सो सेलो।
पंचसयजोयणाइं तत्तो रुंभेदि याकासं।।१९८१।।
दसविंदं भूवासो पंचसया जोयणाणि मुहवासो।
एवं लोयविणिच्छयमग्गायणिएमुदीरेदि।।१९८२।।
सौमनसवन के भीतर पूर्वादिक चारों दिशाओं में चार (जिनमंदिर) हैं। इनका सम्पूर्ण वर्णन विस्तारपूर्वक ही समान जानना चाहिए।।१९६८।।
प्रत्येक जिनमंदिर सम्बन्धी कोटों के बाहर दोनों पाश्र्व भागों में जो दो-दो कूट स्थित हैं, उनके नाम ये हैं—नन्दन, मन्दर, निषद, हिमवान, रजत, रुचक, सागरचित्र और वङ्का। ये कूट पूर्वादिक्रम से कहे गए हैं।।१९६९-१९७०।।
उन प्रत्येक कूटों का विस्तार शिखर पर एक सौ पच्चीस योजन और मूल में इससे दुगुणा है। मूल विस्तार के समान ही ऊँचाई भी दो सौ पचास योजन प्रमाण है।।१९७१।।
शिखरव्यास १२५। मूलव्यास २५०। उत्सेध २५०। कूटों के मूल व उपरिम भागों में उत्तम रत्नों से रचित और पूर्व के समान वर्णन से सहित दिव्य वेदियाँ हैं।।१९७२।।
कूटों के ऊपरिम भाग में चार वेदी तोरणों से रमणीय अनुपम आकार वाले नाना प्रकार के प्रासाद स्थित हैं।।१९७३।।
सब भवनों की ऊँचाई पृथक्-पृथक् पन्द्रह सौ धनुष, विस्तार एक कोस का चतुर्थ भाग और दीर्घता इससे दुगुनी अर्थात् आधा कोस प्रमाण है।।१९७४।।
उत्सेध ध. १५००। विस्तार को. १/४। दीर्घता १/२। मन्दिरों का विस्तार पाँच के घन अर्थात् एक सौ पच्चीस कोस प्रमाण और ऊँचाई इससे दुगुणी है। इस प्रकार लोकविनिश्चय के कर्ता प्रमाण का निरूपण करते हैं।।१९७५।।
व्यास १२५। उत्सेध २५०। (पाठान्तर) पूर्वादिक कूटों पर क्रम से मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, चतुर्थ मेघमालिनी, तोयंधरा, विचित्रा, पुष्पमाला और अन्तिम अनिन्दिता, इस प्रकार ये दिव्य रूप वाली कन्याकुमारी देवियाँ स्थित हैं।।१९७६-१९७७।।
सौमनसवन के भीतर ईशान दिशा में एक सौ योजनप्रमाण ऊँचा और मूल में इतने ही विस्तार वाला बलभद्र नामक कूट है।।१९७८।।
उत्सेध १००। व्यास १००। उस कूट का विस्तार शिखर पर पचास योजन और मध्य में मुख एवं भूमि के सम्मिलित विस्तारप्रमाण से आधा है।।१९७९।।
यह बलभद्रकूट हजार योजनप्रमाण ऊँचा और इतने ही विस्तारप्रमाण से सहित होता हुआ सूर्यमण्डल के समान समवृत्त है।।१९८०।।
उत्सेध १०००। विस्तार १०००। वह शैल सौमनसवन के सम्पूर्ण विस्तार को रोककर पुनः पाँच सौ योजनप्रमाण आकाश को रोकता है।।१९८१।।
उसका भूविस्तार दश के घनरूप अर्थात् एक हजार योजन और मुखविस्तार पाँच सौ योजनप्रमाण है। इस प्रकार लोकविनिश्चय व मग्गायणी में कहते हैं।।१९८२।। १०००। ५००। (पाठान्तर)