साम्प्रतं विदेहमध्यस्थितमन्दरगिरेःस्वरूपमाचष्टे— मेरू विदेहमज्झे णवणउदिदहेक्कजोयणसहस्सा।उदयं भृमुहवासं उवरुवरिगवणचउक्कजुदो१।।६०६।।
मेरुः विदेहमध्ये नवनवतिदशैकयोजनसहस्राणि।उदयः भूमुखव्यासः उपर्युपरिगवनचतुष्कयुतः।।६०६।।
मेरू। विदेहस्य मध्यप्रदेशे मेरुरस्ति, तस्योदयभूमुखव्यासा यथासंख्यंनवनवतिसहस्र ९९००० दशसहस्र १०००० एकसहस्र १००० योजनानि स्युः।स च पुनरुपर्युपरि कणयगतवनचतुष्कयुतः।।६०६।।
इदानीं वनचतुष्कस्य संज्ञा तदन्तरालं च प्रतिपादयति—भू भद्दसाल साणुग णंदणसोमणसपांडुकं च वणं।इगिपणघणबाबत्तरिहदपंचसयाणि गंतूणं।।६०७।।
भुवि भद्रशालं सानुगं नन्दनसौमनसपाण्डुकं च वनम्। एक पञ्चघनद्वासप्ततिहतपञ्चशतानि गत्वा।।६०७।।
भूभद्द। भूगतं वनं भद्रशालाख्यं सानुत्रयगतानियथासंख्यं नन्दनसौमनसपाण्डुकाख्यवनानि,तानि एक १ पञ्चघन १२५ द्वासप्तति ७२ हत पञ्चशतयोजनानि५००। ६२५००। ३६००० गत्वा गत्वा तिष्ठन्ति।।६०७।।
अथ तद्वनस्थवक्षानाह— मंदारचूदचंपयचंदणघणसारमोचचोचेहिं।तंबूलिपूगजादीपहुदीसुरतरुहि कयसोहं।।६०८।।
मन्दारचूतचम्पकचन्दनघनसारमोचचोचैः।ताम्बूलीपूगजातिप्रभृतिसुरतरुभिः कृतशोभानि।।६०८।।
मंदार। मन्दारचूतचम्पकचन्दनघनसारमोचचोचैःम्बूलीपूगजातिप्रभृतिभिः सुरतरुभिश्च कृतशोभानि तानि वनानि।।६०८।।
विशेषार्थ-अब विदेहक्षेत्र के मध्य में स्थित मन्दर मेरु का स्वरूप कहते हैं—
गाथार्थ-विदेहक्षेत्र के मध्य प्रदेश-स्थान में सुदर्शन मेरु स्थित है, जिसका उदय, भू व्यास और मुखव्यास क्रमशः ९९०००, १०००० और १००० योजन है। यह मन्दिर मेरु के ऊपर-ऊपर चार वनों से संयुक्त हैं।।६०६।।
विशेषार्थ-विदेहक्षेत्र के मध्य स्थित सुदर्शन मेरु ९९००० योजन उँचा है; मूल में उसकी चौड़ाई दस हजार और ऊपर एक हजार योजन है तथा वह ऊपर-ऊपर कटनी में चार वनों से संयुक्त है। चारों वनों के नाम और उनके अन्तराल का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-मेरु की मूल पृथ्वी पर भद्रशाल वन है तथा इसके सानु प्रदेश अर्थात् कटनी पर नन्दन वन, सौमनस वन और पाण्डुक वन हैं। इनकी अवस्थिति एक से गुणित पाँच सौ, पाँच के घन (१२५) से गुणित पाँच सौ और बहत्तर से गुणित पाँच सौ योजन प्रमाण आगे जाकर है।।६०७।।
विशेषार्थ-सुमेरु पर्वत के मूल में (भूमिगत) भद्रशाल नाम का वन है। यह वन मन्दर महाचलेन्द्र के चारों ओर है। इस वन से ५०० ² १ अर्थात् ५०० योजन आगे जाकर कटनी पर दूसरा नन्दन नाम का वन है। इससे ५०० ² ( ५ ² ५ ²५ · १२५) अर्थात् ६२,५०० योजन ऊपर जाकर सौमनस नाम का वन है। इस वन से ५०० ² ७२ अर्थात् ३६००० योजन ऊपर जाकर सुमेरु के शीर्ष पर चौथा पाण्डुक नामक वन है। ये तीनों वन भी मन्दर गिरीन्द्र के चारों ओर हैं।
मन्दर मेरु की कुल ऊँचाई ९९००० योजन है। चारों महावनों के तीन अन्तरालों का एकत्रित (५०० ± ६२५०० ± ३६०००) प्रमाण सुदर्शन मेरु की उँचाई ९९००० योजन प्रमाण है। उन वनों में स्थित वृक्षों को कहते हैं
गाथार्थ-कल्पवृक्षों की शोभा प्राप्त करने वाले उन चारों वनों में मन्दार, आम्र, चम्पक, चन्दन, घनसार, केला, श्रीफल, ताम्बूली, सुपारी और जायपत्री आदि के अनेक वृक्ष हैं।।६०८।।