अथ नन्दनवनस्थव्यन्तरं सपरिकरमाह— बलभद्दणामकूडे णंदणगे मेरुपव्वदीसाणे।
उदयमहियसयदलगो तण्णामो वेंतरो वसई१।।६२४।।
बलभद्रनामकूटे नन्दनगे मेरुपर्वतैशान्याम्।
उदयमहीकशतदलकः तन्नामा व्यन्तरो वसति।।६२४।।
बलभद्द। मेरुपर्वतैशान्यां दिशि नन्दनस्थे शतोदयशतभूव्यासे
तद्दलाग्रे बलभद्रनामकूटे बलभद्रनामा व्यन्तरो वसति।।६२४।।
अथ नन्दनवनस्थवसतीनामुभयपाश्र्वस्थकूटादीन् गाथात्रयेणाह—
णंदण मंदर णिसहा हिमवं रजदो य रुजयसायरया।
वज्जो कूडा कमसो णंदणवसईण पासदुगे।।६२५।।
हेममया तुंगधरा पंचसयं तद्दलं मुहस्स पमा।
सिहिरगिहे दिक्कण्णा वसंति तािंस च णाममिणं।।६२६।।
मेहंकरमेहवदी सुमेहमेहादिमालिणी तत्तो।
तोयंधरा विचित्ता पुप्फादिममालििंणदिदया।।६२७।।
नन्दनो मन्दरः निषधः हिमवान् रजतश्च रुचकसागरकौ।
वङ्काः कूटाः क्रमशः नन्दनवसतीनां पाश्र्वद्विके।।६२५।।
हेममयाः तुङ्गधराः पञ्चशतं तद्दलं मुखत्य प्रमा।
शिखरगृहे दिक्कन्याः वसन्ति तासां च नामानीमानि।।६२६।।
मेघज्र्रा मेघवती सुमेघा मेघादिमालिनी ततः।
तोयन्धरा विचित्रा पुष्पादिममाला अनिन्दितका।।६२७।।
णंदण। नन्दनो मन्दरो निषधो हिमवान् रजतश्च रुचकः सागरो वङ्कााख्याः
एते कूटाः क्रमशो नन्दनस्थवसतीनामुभयपाश्र्वे तिष्ठन्ति।।६२५।।
हेममया। ते कूटा हेममयाः तेषामुदयभूव्यासौ प्रत्येवं पञ्चशतयोजनानि ५०० तद्दलं २५० मुखव्यासप्रमाणं तेषां शिखरगृहेषु दिक्कन्या वसन्ति।
तासां चेमानि नामान्यग्रे वक्ष्यमाणानि।।६२६।।
मेहंकर। मेघज्र्रा मेघवती सुमेघा मेघमालिनी ततस्तोयन्धरा विचित्रा पुष्पमाला अनिन्दिताख्याः स्युः।।६२७।।
सुमेरूकेनन्दनवन में बलभद्र आदि ९ कूट हैं।
नन्दनवन में रहने वाले व्यन्तर देव एवं उसके परिकर का कथन करते हैं—
गाथार्थ—मेरु पर्वत की ऐशान दिशा स्थित नन्दनवन में सौ योजन ऊँचा तथा भूमि पर सौ योजन चौड़ा और ऊपर ५० योजन चौड़ा बलभद्र नाम का कूट है जिसमें बलभद्र नाम का व्यन्तर देव निवास करता है।।६२४।।
नन्दनवन में स्थित भवनों के दोनों पाश्र्व भागों में जो कूटादिकों की अवस्थिति है उन्हें तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ—१ नन्दन, २ मन्दर, ३ निषध, ४ हिमवान्, ५ रजत, ६ रुचक, ६ सागर और ८ वङ्का ये आठ कूट क्रम से नन्दनवन में स्थित चार भवनों के दोनों पाश्र्व भागों में स्थित हैं। ये आठों कूट स्वर्णमयी हैं, इनकी ऊँचाई पाँच सौ योजन, नीचे भूमि व्यास (चौड़ाई) पाँच सौ योजन तथा ऊपर मुख व्यास ढ़ाई सौ योजन है। इन कूटों के शिखरों पर स्थित भवनों में दिक्कुमारियाँ रहती हैं जिनके मेघज्र्रा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तोयन्धरा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिन्दिता नाम हैं।।६२५,६२६,६२७।।