बिल्कुल ठीक ही कहा है किसी ने। हरेक व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।लाखों—करोड़ों रुपयों, आलीशान महल, खूबसूरत कारें सभी बेकार हैं अगर आप स्वस्थ नहीं रहते हैं। आधुनिक युग में मनुष्य की सेहत खतरे में है, जिसका मुख्य कारण हमारे खानपान में आया भारी बदलाव है, जिससे आम नागरिकों के मन में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आई है। स्वस्थ रहना मनुष्य की पहली प्राथमिकता है मगर हमारे संत, ऋषियों, मुनियों , वैद्यों ने भी पौराणिक विधि से स्वस्थ रहने के नुस्खे खोजे हैं। इस तरह की कई सूक्तियां प्रचलित हैं। उनमें से कुछ निम्न है :—
ज्यादा खाय जल्द मरी जाय। सुखी वही जो थोड़ा खाय।
अर्थात् अधिक खाने से पेट में विकार होता है। जो प्राणनाशक होता है और जो सूक्ष्म भोजन करता है वही सुखी रहता है।
आतर दे के सरो व्यायाम करैं। दैव न मारे अपुहे मरै।।
अनियमित व्यायाम करने वालों को भाग्य नहीं मारता, वे स्वयं ही अपनी मौत मरते हैं अनियमित से बेहतर है कि व्यायाम ही न करें।
चैत गुड़ वैशाखे तेल जेठ के पंथ आषाढ़ के बेल।
सावन सागन भादो दही, क्वार दूध न कार्तिक मही।
अगहन जीरा पूसे घना, भादौ मिश्री फागुन चना।।
अर्थात् चैत मास में गुड़, बैसाख मास में तेल, जेठ में चना, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध, कार्तिक में मट्ठा, अगहन में जीरा, पौष में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चने का सेवन करना चाहिए।
प्रात:काल खटिया से उठके पिये तुरंत पानी।
बहिक घर मा बैध न आवे बात घाघ का जानी।।
अर्थात् सवेरे उठते ही जो तुरंत पानी पीता है, उसके घर वैद्य नहीं आता। उठते ही बासा पानी पीने से दस्त साफ होता है और कोई रोग नहीं फटकता है।
कालीमिर्च कू पीसकर घी बूरे संग खाएं।
नैन रोग सब दूर हों, गिद्ध दृष्टि हो जाए।।
अर्थात् कालीमिर्च को पीसकर घी, शक्कर के साथ खाने से आंखों की दृष्टि गिद्ध के समान हो जाती है।