वास्तु शास्त्र में भूमि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र और नदियां एवं दिशाएं प्रत्येक अपना—अपना वजूद रखती है। सांसारिक क्रियाएं इनके सहयोगों के बगैर होना असंभव है। प्रकृति के खजाने में अनमोल निधियों का खजाना उपलब्ध है।वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों और भ्रमण करती है। वैज्ञानिकों का मत है पृथ्वी अति विशाल चुम्बक है। पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति उत्तरी ध्रूव से दक्षिणी ध्रूव में चलती है। इन धाराओं का प्रभाव सभी पर पड़ता है। मानव के शरीर में लौह तत्व विद्यमान है। पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति अप्रत्यक्ष रूप से मानव के जीवन को प्रभावित करती है। वास्तु शास्त्र के मुख्य नियम पूर्व की दिशा को खाली रखें। सूर्य का प्रकाश भूखण्ड, फ्लैट, मकान में बगैर बाधा के प्रवेश करे। सूर्य की किरणों का प्रभाव हवा के माध्यम से प्राप्त होता है। सूर्य की रोशनी जिसे हम धूप कहते हैं बहुत ही गुणकारी औषधी है। नि:शुल्क मिलने वाली दवा है। चरक संहिता में सूर्य स्नान का वर्णन मिलता है। प्राकृतिक अवस्था में धूप सेवन करने से अनेक रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। घूप से बैक्टीरिया, कीड़े–मकोड़े पलायन करने लगते हैं। विटामिन डी प्रचुर मात्रा में शरीर प्राप्त कर लेता है। धूप से निकलने वाले पसीने से शरीर में जमा विजातीय तत्वों को निकाल बाहर करते हैं। पसीना निकालने की क्रिया सप्ताह में एक—दो बार १५—२० मिनट तक करनी चाहिए। विदेशों में यह क्रिया सनबाथ के नाम से प्रचलित हो चुकी है।सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मानव के प्रत्येक क्रियाओं में सहयोगी है। जैन धर्म के मानने वाले सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही भोजन ग्रहण करते हैं। उसी तरह सुबह की किरणें भूखण्ड, फ्लैट, मकान में उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जाओं का शमन करती हैं। सकारात्मक ऊर्जाओं का सृजन करता है। भोडसो तपन्नदेति सर्वेषा भूतानां प्राणानादायोत् । स एष वैश्वानरी विश्वरूप प्राणेडग्नि रूदये।।(श्रुति का कथन)
अर्थात् सूर्य सभी प्राणियों के प्राणों का स्रोत है जब सूर्य का उदय होता है, तभी सम्पूर्ण संसार में प्राणग्नि का संचार आरम्भ होता है। नितिकारों का वचन है जिस कुएँ एवं बावड़ी पर सूर्य का प्रकाश, रात में चन्द्रमा का प्रकाश पहुँचता हो वह जल औषधि का रूप धारण कर लेता है। सूर्य की तरह चन्द्रमा का भी प्रभाव मानव जीवन, वास्तु शास्त्र पर पड़ता है। कूप , नदी—नाले, समुद्र—चन्द्रमा की ऊर्जाओं से ऊजाएं प्राप्त करते हैं। ज्वारभाटा, समुद्र में उफान, चन्द्र और सूर्य की गतिविधियों की देन हैं।
चन्द्रमा की रोशनी मानव के मन में शीतलता और शांति प्रदान करती है। चन्द्रमा की रोशनी में गिरने वाली ओस की बूंदे मोती तुल्य लगती है। मॉर्निंग वाक करने वाले घास पर नंगे पैर चलते हैं। घास एवं ओस की बूंदों के सहयोग से जो ऊर्जाएं विकसित होती है वो पैर के तलों के माध्यम से पूरे शरीर तक पहुंचती है। पृथ्वी पर जितनी भी वस्तुएं हैं जिनमें जल का अंश रहता है । वो सभी चीजें चन्द्रमा का प्रभाव पूर्णिमा एवं अमावस्या, अष्टमी, चतुर्दशी को विशेष रूप से देखा जाता है। इन तिथियों पर सिर्फ समुद्र में ही नहीं मानव शरीर में भी पानी का भाग बढ़ जाता है। इसलिए उस दिन उपवास, व्रत करने का सब धर्मों में कहीं न कहीं नियम बताया गया है। जैन धर्म वाले अष्टमी, चतुर्दशी को पर्व मानते हैं एवं उस दिन उपवास व्रत रखने का प्रयास करते हैं पूर्वी ईशान और उत्तरी ईशान को जल का स्थान बताया गया है। ईशान कोण खुला हुआ रहता है। अत: यह जल का स्थान होने से इस स्थान का जल प्रदूषण से मुक्त रहता है। प्रात: काल की सूर्य किरणे रात में चन्द्र की किरणों से प्रभावित होते रहती है। ईशान कोण का जल चन्द्रमा की तरह शीतलता प्रदान करता है। चन्द्रमा की रोशनी को चाँदनी कहते हैं। चाँदनी को चाँदी भी कहा गया है। चाँदनी और चाँदी दोनों ही शीतलता प्रदान करती है।चन्द्रमा की रोशनी आपके मकान, फ्लैट में प्रवेश करना शुभ संकेत है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य आपको स्वस्थ रखना एवं चिंताओं से मुक्त रखना है। अगर हम लोग शास्त्रों के बताये मार्ग पर भूखण्ड की रचना करते हैं । निश्चित रूप से आपको सकारात्मक भाव पैदा होंगे। आपके मुँह से कभी भी ये नहीं निकलेगा मैं जानता नहीं, मुझे मालूम नहीं, मैंने कभी नहीं किया है, मैं नहीं कर सकता। पूरा ब्रह्माण्ड आपकी भावनाएं आपके शब्द जो आप सोचते हो, बोलते हो वहीं आपको वापिस प्रदान करता है। उसे आज की भाषा में इको कहते हैं हर समय हर काम के लिए सकारात्मक सोच सकारात्मक भाषा का प्रयोग, सकारात्मक कार्यशैली आपको आगे बढ़ाने में बहुत मददगार होगी। अगर मंजिल के करीब पहुंचना है आपके मुँह से हमेशा हाँ ही निकलनी चाहिए। तब आप अपनी मंजिल के करीब पहुंचेंगे।
—सम्पत के.एम.सेठी,
ऋषभ देशना’जुलाई, २०११