गयदंतगिरी सोलस सीदासीदोदयाण तीरेसुं।
पणसयजोयणउदया कुलगिरिपासेसु एक्कसयहीणा१।।२३०७।। ५००। ४००।
वक्खाराणं दोसुं पासेसुं होंति दिव्ववणसंडा।
पुह पुह गिरिसमदीहा जोयणदलमेत्तवित्थारा।।२३०८।।
सव्वे वक्खारगिरी तुरंगखंधेण होंति सारिच्छा।
उवरिम्मि ताण कूडा चत्तारि हवंति पत्तेक्वकं।।२३०९।।
सिद्धो वक्खारुड्ढाधोगदविजयणामकूट य।
ते सव्वे रयणमया पव्वयचउभागउच्छेहा।।२३१०।।
सीदासीदोदाणं पासे एक्को जिणदभवणजुदो।
सेसा य तिण्णि कूट वेंतरणयरेिंह रमणिज्जा।।२३११।।
सोलह गजदन्त पर्वत (वक्षार) सीता-सीतोदा के किनारों पर पाँच सौ योजन और कुलाचलों के पाश्र्वभागों में एक सौ कम अर्थात् चार सौ योजन ऊँचे हैं।।२३०७।।
वक्षार पर्वतों के दोनों पाश्र्वभागों में पृथक़-पृथक़ पर्वत के समान लंबे और अद्र्धयोजनमात्र विस्तार वाले दिव्य वनखण्ड हैं।।२३०८।।
सब वक्षार पर्वत घोड़े के स्वंध के सदृश होते हैं। इनमें से प्रत्येक पर्वत के ऊपर चार कूट हैं।।२३०९।।
इनमें से प्रथम सिद्धकूट, द्वितीय वक्षार के समान नाम वाला और शेष दो कूट वक्षारों के अधस्तन और उपरिम क्षेत्रों के नामों से युक्त हैं। वे सब रत्नमय कूट अपने पर्वत की ऊँचाई के चतुर्थभाग प्रमाण ऊँचे हैं।।२३१०।।
सीता-सीतोदा के पाश्र्वभाग में एक कूट जिनेन्द्रभवन से युक्त और शेष तीन कूट व्यन्तरनगरों से रमणीय हैं।।२३११।।