इन गजदन्तों की गहराई अपनी-अपनी उँचाई प्रमाण के चतुर्थांश मात्र है। सौमनस पर्वत के ऊपर सिद्ध, सौमनस, देवकुरु, मंगल, विमल, कांचन और वशिष्ट, ये सात कूट मेरु से लेकर निषधपर्वत पर्यन्त स्थित हैं।२०३०-२०३१।।
सौमनस पर्वत की उँचाई में चार का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतनी इन कूटों की उँचाई है। इन कूटों के विस्तार और लम्बाई के विषय में उपदेश नहीं है।।२०३२।।
भूमि में से मुख को कम करके उदय का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना भूमि की अपेक्षा हानि और मुख की अपेक्षा वृद्धि का प्रमाण होता है। यहाँ मुख का प्रमाण सौ योजन, भूमि का पाँच के घनप्रमाण अर्थात् एक सौ पच्चीस योजन और उदय एक कम कूटसंख्याप्रमाण है।।२०३३।। १०० । १२५। ६।
वह क्षय-वृद्धि का प्रमाण छह से भाजित पच्चीस योजन है। इसको भूमि में से कम करने और मुख में जोड़ने पर कूटों की उँचाई का प्रमाण आता है।।२०३४।। २५/६।
अथवा, इच्छा से गुणित क्षय-वृद्धि को भूमि में से कम करने और मुख में मिला देने पर कूटों की उँचाई होती है। इनमें से प्रथम कूट की उँचाई पाँच के घनप्रमाण अर्थात् एक सौ पच्चीस योजन है।।२०३५।। १२५।
द्वितीय कूट की उँचाई एक सौ बीस योजन और छह से विभक्त पाँच कलाप्रमाण तथा तृतीय की उँचाई एक सौ सोलह योजन और तीन से भाजित दो कलाप्रमाण है।।२०३६।। १२०-५/६। ११६-२/३।
चतुर्थ कूट की उँचाई एक सौ साढ़े बारह योजन और पाँचवें कूट की उँचाई एक सौ आठ योजन तथा एक योजन के तीसरे भाग से अधिक है।।२०३७।। ११२-१/२ । १०८-१/३।
छठे कूट की उँचाई एक सौ चार योजन और छह से भाजित एक कलाप्रमाण तथा सातवें कूट की उँचाई एक सौ योजनमात्र है।।२०३८।। १०४-१/६। १००।
सौमनस नामक पर्वत की लम्बाई में सात का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक कूटों के अन्तराल का प्रमाण होता है।।२०३९।।
यह अन्तराल प्रमाण चार हजार तीन सौ पन्द्रह योजन और एक सौ तेतीस से भाजित व्यासी कला है।।२०४०।। ४३१५-८२/१३३।
प्रथम कूट के ऊपर एक जिनभवन है। इसके विस्तार, उँचाई और लम्बाई आदि का वर्णन पाण्डुकवन सम्बन्धी जिनपुर के सदृश है।।२०४१।।
शेष कूटों पर वेदी एवं तोरण से सहित और उत्तम रत्नों से खचित ऐसे व्यन्तर देवों के सुवर्णमय प्रासाद हैं।।२०४२।।
कांचन कूट पर एक पल्यप्रमाण आयु से युक्त सुवत्सा देवी (सुमित्रा देवी) और विमल नामक श्रेष्ठ कूट पर श्रीवत्समित्रा देवी निवास करती है।।२०४३।।
शेष चार कूटों पर अपने कूट के सदृश नाम वाले व्यन्तरदेव विविध प्रकार के विनोद से क्रीड़ा करते हैं१।।२०४४।।