तर्ज—सौ साल पहले……
तीरथ अयोध्या जग में शाश्वत रहेगा-शाश्वत रहेगा।
पहले भी था और आगे भी रहेगा।।टेक.।।
असंख्यों तीर्थंकर इस ही धरा पर पहले जन्मे हैं।
असंख्यों और भी प्रभुवर यहीं आगे भी जन्मेंगे।।
तीरथ की कीरत हर कवि गाता रहेगा-गाता रहेगा।
पहले भी था और आगे भी रहेगा।।१।।
न जाने कितने इतिहासों की जननी यह नगरिया है।
प्रभू वृषभेश भरतेश्वर की जननी यह अयोध्या है।।
जननि जन्मभूमी का स्वर शाश्वत रहेगा-शाश्वत रहेगा।
पहले भी था और आगे भी रहेगा।।२।।
हमें तीर्थेश की महिमा जगत को अब सुनाना है।
जिओ खुद जीने दो सबको यही जग को बताना है।।
‘‘चन्दनामती’’ तब जग में अमृत बहेगा-अमृत बहेगा।
पहले भी था और आगे भी रहेगा।।३।।