द्विप्रदेशी आदि सारे सूक्ष्म और बादर (स्थूल) स्कनध अपने परिणमन के द्वारा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के रूप में अनेक आकार वाले बन जाते हैं। अवगाढगाढनिचित: पुद्गलकायै: सर्वतो लोक:। सूक्ष्मैबार्दरैश्चाप्रायोग्यै:।।
यह लोक सब ओर से इन सूक्ष्म—बादर पुद्गल—स्कन्धों से ठसाठस भरा हुआ है। उनमें से कुछ पुद्गल कर्मरूप के योग्य होते हैं और कुछ अयोग्य होते हैं।