(अनेकान्तात्मक वस्तु की सापेक्षता के प्रतिपादन में प्रत्येक वाक्य के साथ ‘स्यात्’ लगाकर कथन करना स्याद्वाद का लक्षण है।) इस न्याय में प्रमाण, नय और दुर्नय के भेद से युक्त सात भंग होते हैं। ‘स्यात्’—सापेक्ष भंगों को प्रमाण कहते हैं। नय युक्त भंगों को नय कहते हैं और निरपेक्ष भंगों को दुर्नय। एकनिरुद्धे इतर: प्रतिपक्षोऽपरश्च स्वभाव:। सर्वेषां स स्वभावे, कत्र्तव्या भवन्ति तथा भंगा:।।
वस्तु के एक धर्म को ग्रहण करने पर उसके प्रतिपक्षी दूसरे धर्म का भी ग्रहण अपने आप हो जाता है, क्योंकि दोनों ही धर्म वस्तु के स्वभाव हैं। अत: सभी वस्तु—धर्मों में सप्तभंगी की योजना करनी चाहिए। यदनेकधर्मणो वस्तुनस्तदंशे च सर्वप्रतिपत्ति:। अन्धा इव गजावयवे, ततो मिथ्यादृष्टयो विष्वक्।।
जैस हाथी के पूंछ, पैर, सूंड आदि टटोलकर एक—एक अवयव को ही हाथी मानने वाले जन्मान्ध लोगों का अभिप्राय मिथ्या होता है, वैसे ही अनेक धर्मात्मक वस्तु के एक एक अंश को ग्रहण करके ‘हमने पूरी वस्तु जान ली है’—ऐसी प्रतिपत्ति करने वालों का उस वस्तु विषयक ज्ञान मिथ्या होता है।