नत्वा जिनेन्द्रं गतसर्वदोषं, स्वानन्दभूतं धृतशान्तरूपम्।
नरामरेन्द्रैर्नुतपादयुग्मं, श्रीवीरनाथं प्रणमामि नित्यम्।।
नाना प्रकार के कर्मों से यह संसारी आत्मा क्षण क्षण में जरा से निमित्तों को प्राप्त कर आकुल—व्याकुल हो उठता है। जागृत व सचेत अवस्था में तो नाना प्रकार के मन के घोड़े दौड़ाता रहता है लेकिन आश्चर्य यह है कि जब यह प्राणी शारीरिक व मानसिक चेष्टाओं में व्यस्त होने पर थकान का अनुभव करता है तथा उसे दूर करने का उपाय सोचता है तब आश्रय एकान्त स्थान का लेता है और वहाँ विश्राम कर समस्त िंचताओं से दूर होने के लिए निद्रादेवी की गोद में अपने को समर्पित कर देता है। जरा ध्यान से विचार करें कि उस निद्रित अवस्था में शारीरिक व वाचनिक क्रियायें सभी स्तब्ध हो जाती है। लेकिन क्या वह मुक्त है िंचताओं से, क्या उसके मन ने विश्राम पाया है ? आप कह सकते हैं कि ऐसी अवस्था में मन करेगा भी क्या ! अरे भाई, उस समय भी वह जीव कर्मबन्ध कर रहा है। अचेत होकर भी यदि कहो वैâसे? तो बहुत ही सीधा और सरल उत्तर है—उस कर्म बन्धन से बद्ध होने का प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं, जिसे मुक्त स्वर में सभी स्वीकार करते हैं। चलो, अपने भूतकालीन अनुभवों की डायरी उठाकर देखें तो पता चल जावेगा कि हम अमुक दिन सोकर उठे तो अपने को घबड़ाते हुए पाया। घबड़ाने का कारण था बस, यही न कि स्वप्न में मेरे बच्चे को हरण कर लिया है और अपने चित्त की पूर्ण शान्ति को खो चुका हूँ। इस प्रकार नाना तरह से स्वप्न देखा ही करते हैं, कभी कुछ कभी कुछ ये सब हमें ज्ञात कराते हैं कि हम शारीरिक व वाचनिक क्रिया के निरोध में भी कर्मबन्धन से अछूते नहीं हैं। हमारा हर समय आकुलताओं में निकल रहा है। शास्त्रों में हम पढ़ा करते हैं कि स्वर्गों में रात्रि दिन का भेद नहीं होता। ठीक उसी प्रकार आकुलताओं की स्थिति में भी रात्रि दिन का भेद नहीं होता। दिन की अपेक्षा अपने को रात्रि में अधिक व्याकुल पाते हैं। सुबह होते ही स्वप्न का शुभ—अशुभ जानने की चिन्ता व्यक्त करते हुए लोगों को देखा जाता है। उसका कारण जब खोजते हैं तो पाते हैं कि इस विषय का हमें अध्ययन ही नहीं है। अष्टांग निमित्तों का कथन करते हुए ज्योतिष विषय के माध्यम से स्वामी भद्रबाहु ने अपने नाम से एक संहिता लिखी है। इसका पूरा नाम ‘‘भद्रबाहु संहिता’’ है। इसी ग्रंथ के छब्बीसवें अध्याय में उन्होंने स्वयं लिखा है—
नमस्कृत्य महावीरं सुरासुर जनैर्नतम्।
स्वप्नाध्यायं प्रवक्ष्यामि शुभाशुभ—समीरितम्।।
अर्थात् देव और दानवों द्वारा नमस्कृत किये गये भगवान महावीर स्वामी को नमस्कार कर स्वप्नों के शुभाशुभ निमित्तों का वर्णन करता हूँ।
आचार्यश्री कहते हैं कि स्वप्न दो प्रकार के होते हैं–शुभ और अशुभ। स्वप्न शास्त्र में प्रधानतया स्वप्न नौ प्रकार के कहे गये हैं। यथा—दृष्ट—श्रुत—अनुभूत—प्रार्थित—कल्पित—भाविक—दोषज, मंत्रज व देव।
(१) दृष्ट—जो कुछ जागृत अवस्था में देखा हो उसी को स्वप्न अवस्था में देखा जावे।
(२) श्रुत—सोने से पहले कभी किसी से सुना हो उसे स्वप्न अवस्था में देखा जावे।
(३) अनुभूत—जो जागृत अवस्था में किसी भाँति अनुभव किया हो उसी का स्वप्न देखना।
(४) प्रार्थित—जिसकी जागृत अवस्था में प्रार्थना (इच्छा) की हो उसी को स्वप्न में देखना।
(५) कल्पित—जिसकी जागृत अवस्था में कभी भी कल्पना की हो उसे स्वप्न में देखना।
(६) भाविक—जो कभी न देखा न सुना हो, पर जो भविष्य में होने वाला हो उसे स्वप्न में देखना।
(७) दोषज—वातादि दोषों से उत्पन्न दोषज स्वप्न।
(८) मंत्रज—पापरहित मंत्र साधना द्वारा सम्पन्न स्वप्न।
(९) देव—पुण्य और पाप के व्यापक स्वप्न—
विशेष—इन नौ प्रकार के स्वप्नों में मंत्रज और देव ये स्वप्न सत्य होते हैं। आरम्भ के ६ प्रकार के स्वप्न प्राय: निष्फल होते हैं। अशुभ के आने पर व्यक्ति स्वप्न के पश्चात् जागकर सो जावे तो अशुभ स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है। यदि स्वप्न के पश्चात् पुन: शुभ स्वप्न दिखाई पड़े तो अशुभ फल नष्ट होकर शुभ फल की प्राप्ति होती है। अशुभ फल के दिखलाई पड़ने पर जगकर णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिये। यदि अशुभ स्वप्न के पश्चात् शुभ स्वप्न आवे तो दुष्ट स्वप्न की शांति के उपाय की आवश्यकता नहीं है। स्वप्न के सम्बन्ध में आचार्य भद्रबाहु कहते हैं कि बुद्धिमान् व्यक्ति को गुरु के समक्ष शुभ—अशुभ स्वप्नों का कथन करना चाहिये किन्तु अशुभ स्वप्नों को गुरु के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के समक्ष कभी भी प्रकाशित नहीं करना चाहिये।
सर्वप्रथम यहाँ वात—पित्त—कफ प्रकृति वाला व्यक्ति किस प्रकार के स्वप्न विशेषरूप से देखता है उसे क्रमश: बताते हैं—
(१) गिरना, तैरना, सवारी पर चढ़ना, पर्वत पर चढ़ना, वृक्ष, प्रासाद (महल) पर चढ़ना आदि को वात प्रकृति वाला व्यक्ति देखता है।
(२) रक्त पीत पदार्थ, अग्नि संस्कार से युक्त पदार्थ, स्वर्ण के आभूषण उपकरण आदि को पित्त प्रकृति वाला देखता है।
(३) जल—जल से उत्पन्न पदार्थ धान्य, पत्र सहित कमल, मणि मोती प्रवाल आदि को स्वप्न में कफ प्रकृति वाला व्यक्ति देखता है।
(१) जो िंसह, व्याघ्र, गाय, बैल, घोड़ा और मनुष्य से युक्त होकर रथ पर चढ़कर गमन करते हुए देखता है वह राजा या शासक होता है।
(२) श्रेष्ठ हाथी पर चढ़कर महल या समुद्र में प्रवेश करते हुए स्वप्न देखता है, वह नीच शासक होता है।
(३) जो श्वेत हाथी पर नदी या नदी के तट पर भात का भोजन करता हुआ स्वप्न में देखता है वह शीघ्र शासक होता है।
(४) जो व्यक्ति प्रासाद, भूमि या सवारी पर आरूढ़ हो सोने या चाँदी के बर्तनों में स्नान, भोजन, पान आदि की क्रियायें करता हुआ स्वप्न में देखे उसे राज्य की प्राप्ति होती है।
(५) जो राजा स्वप्न में श्वेत वर्ण के मल मूत्र आदि को इधर—उधर फेंकता है वह राज्य, काल को शीघ्र प्राप्त होता है।
(६) जो व्यक्ति स्वप्न में जहाँ तहाँ स्थित होकर जीभ को नखों से खुरचता दीखे व लालवर्ण की झील में स्थित होता हुआ देखे वह व्यक्ति नीच होते हुए भी राजा या शासक होता है।
(७) जो व्यक्ति स्वप्न में वन, पर्वत, अरण्य युक्त पृथ्वी सहित समुद्र के जल को भुजाओं द्वारा पार करता हुआ देखे, वह व्यक्ति राज्य प्राप्त करता है।
(८) जो राजा स्वप्न में सिर कटा हुआ या तलवार के द्वारा छेदित हुआ देखता है उसे सहस्रों का लाभ तथा प्रचुर भोग प्राप्त होता है।
(९) जो व्यक्ति स्वप्न में धनुष पर बाण चढ़ाना, धनुष का स्फालन करना, प्रत्यंचा को समेटना आदि देखता है वह अर्थ लाभ करता है। युद्ध में जय व शत्रु का वध होता है।
(१०) जो व्यक्ति सिर पर पर्वत, घर, खण्डहर तथा दीप्तिमान पदार्थों को देखता है वह स्वस्थ होकर भूमि का उपभोग करता है।
(११) जो स्वप्न में मृतिका के हाथी पर समुद्र को पार करता हुआ देखे और उसी स्थिति में जाग जावे तो वह शीघ्र ही पृथ्वी का स्वामी होता है। जो व्यक्ति शस्त्रों द्वारा शत्रुओं को परास्त कर पृथ्वी और पर्वतों को अपने आधीन कर लेना देखता है अथवा जो शुभ पर्वतों पर अपने को आरोहण करता देखता है वह राज्याभिषेक को प्राप्त होता है।
(१२) जो व्यक्ति स्वप्न में हाथी, गाय, सवारी, धन, लक्ष्मी, कामदेव, अलंकार और आभूषणों से युक्त पुरुष का दर्शन करता है उसके भाग्य की वृद्धि होती है। जो स्वप्न में अपने शरीर की नसों से गांव को वेष्टित करते देखे, वह मण्डलाधिप होता है।
(१३) जो स्वप्न में तालाब स्थित पात्र में रखी खीर को निश्चित हो खाते देखता है वह चक्रवर्ती राजा होता है।
(१४) यदि स्वप्न में कोई धन धान्य से युक्त हो राज, राजपुत्र या चोर होना अपने को देखे तो राज्य की अभिवृद्धि होती हैं।
जो व्यक्ति स्वप्न में सूर्य या चन्द्रमा का स्पर्श करता देखता है वह व्यक्ति सौभाग्य बंधन की प्राप्ति करता है। जो स्वप्न में शुक्ल वस्त्र और श्रेष्ठ आभूषणों से अलंकृत होकर हाथी पर चढ़ा हुआ भयभीत देखता है वह समृद्धि को प्राप्त होता है। जो स्वप्न में संतोष के साथ देव, साधु, ब्राह्मणों को और प्रेतों को देखते हैं वे सब सुख चाहते हैं, सुख प्राप्त करते हैं और विपरीत देखने से विपरीत फल होता है। अर्थात् स्वप्न में उक्त देव, साधु का क्रोधित होना देखने से उलटा फल होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में गृह को विवर्ण देखे या पहचाने वह शीघ्र ही विपत्ति से छुटकारा पाता है। यदि स्वप्न में शर्बत या जल को पीता हुआ देखे अथवा किसी बंधे व्यक्ति को छोड़ता हुआ देखे तो उस स्वप्न का फल ब्राह्मण के लिये सोमपान और शिष्यों के लिए धन सम्पत्ति देने वाला होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में नीचे कुएँ के छिद्र को और भयभीत होकर स्थल पर चढ़ता हुआ देखता है वह धन धान्य द्वारा वृद्धि को प्राप्त होता है। स्वप्न में वीणा, वल्लकी और विष को ग्रहण करे पश्चात् जागृत हो जावे तो उसी स्त्री को सुन्दर गुणवती कन्या की प्राप्ति है। जो स्वप्न में विष भक्षण द्वारा मृत्यु को प्राप्त हो अथवा विष भक्षण करना देखे तो वह धन—धान्य से युक्त होता है तथा चिरकाल तक वह किसी प्रकार के बन्धन में बंधा नहीं रहता। स्वप्न में पूज्य व्यक्तियों का दर्शन करना, सामायिक पुष्प और फलों का दर्शन करना धन प्राप्ति के लिये होता है। स्वप्न में शयन आसन करना हितकर और प्रशस्त माना गया है। शोक युक्त व्यक्ति, यदि स्वप्न में मरुस्थल, वृक्षरहित वन एवं जल रहित नदी को देखता है तो उसके लिए वह स्वप्न शुभ फलप्रद होता है। स्वप्न में जो कोई आसन, शय्या, सवारी, घर, वस्त्र आभूषण दान करता है व देखता है वह सुखी होता है तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। अलंकृत पदार्थ, श्वेत हाथी, घोड़े, बैल आदि का स्वप्न में दर्शन करने से यश की प्राप्ति होती है। पताका, तलवार, लाठी, शुक्ति, सीप, मोती, सोना, दीपक आदि को स्वप्न में प्राप्त करता है वह भी धन प्राप्त करता है। जो व्यक्ति स्वप्न में सांप, बिच्छू या अन्य कीड़ों द्वारा काटे जाने पर भयभीत नहीं होता और शोक नहीं करता हुआ देखता है वह धन को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति स्वप्न में काला गुरु, चन्दन की घिसने से सुगन्धित के कारण प्रशंसा करता है तथा उनका लेपन करना पीसना देखता है उसे धन की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति स्वप्न में पुष्पित केला और देवदारु या नीम के वृक्ष पर बैठना या चढ़ना देखता है उसे धन की प्राप्ति होती है। यदि स्वप्न में कोई मगर या घड़ियाल मनुष्य को खींचता हुआ दिखाई पड़े तो व्यक्ति कारागार आदि या मुकदमा में पँâसा हो उसकी मुक्ति होती है। स्वप्न में यदि किसी व्यक्ति को पीले या लाल फूल या फल दिखलाई पड़े तो उसे सोना—चाँदी का लाभ नि:सन्देह होता है। श्वेत आसन, श्वेत सवारी, श्वेत माला का धारण करना तथा अन्य श्वेत द्रव्यों का दर्शन स्वप्न में शुभ होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में श्रेष्ठ बैलों के रथ पर चढ़कर पूर्व तथा उत्तर की तरफ गमन करता है वह धन प्राप्त करत्ाा है। स्वप्न में गृह में स्थित पुष्प और शाखाओं से युक्त वृक्षों से यदि गिरता हुआ देखता है तो उसकी चेष्टायें सफल होती हैं। जो स्वप्न में शुक्ल और हरे वृक्षों से युक्त अपने को देखता है, उसी समय जाग जाता है व अग्नि द्वारा जलता हुआ अपने को देखता है वह फांसी पर लटकाने के समय फांसी से या कारागार से बद्ध होने पर छोड़ दिया जाता है।
स्वप्न में दूध, तेल, घी का दर्शन शुभ है, खाना शुभ नहीं। विशेष रूप से दर्शन शुभ माना गया है। स्वप्न में जिस व्यक्ति की गोद सुन्दर धन, धान्य, फल, पुष्प से भर जाय वह धन प्राप्त करता है। यदि सुन्दर रूपयुक्त कन्या आती दिखाई पड़े तो क्षत्रियों को राज्य की प्राप्ति और अन्य वर्ण वालों की वृद्धि होती है। स्वप्न में श्वेत गाय बंधी हुई, चलती हुई, ठहरी हुई अथवा खूंटे से शूली दिखलाई पड़े तो हमेशा यश की प्राप्ति होती है। स्वप्न में सफेद वस्त्र अलंकारों से युक्त सुन्दर स्त्री आिंलगन करती दिखलाई पड़े तो उसे सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। जो स्वप्न में उदयाचल पर सूर्य और चन्द्रमा को उदय होते हुए देखे उसे धन की प्राप्ति होती है, उसका दु:ख नष्ट होता है। जो स्वप्न में अपने को हाथी पर बांधे देखता है उसे पुत्र प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति स्वप्न में अपने दाहिनी ओर श्वेत सांप को देखता है और स्वप्न दर्शन के पश्चात् तत्काल उठ जाता है उसे अति लाभ होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में चाँदी के बर्तन में स्थित पैâन सहित दूध को पीते देखता है उसे धन धान्यादि सम्पत्ति की प्राप्ति तथा विद्या का लाभ होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में स्वर्ण भूषण स्वर्ण पीत पुष्प या फल को अन्य किसी द्वारा ग्रहण करते देखता है उसे स्वर्णाभूषणों की प्राप्ति होती है। स्वप्न में दही से सज्जन—प्रेम की प्राप्ति, गेहूं के दर्शन सुख की प्राप्ति, जौ दर्शन से जिन पूजा की प्राप्ति, पीली सरसों के दर्शन से शुभ फल की प्राप्ति होती है। स्वप्न में देवपूजा पूजिका व्यन्तरआदि या देवभक्ति या देव का आिंलगन करने वाली नारी जिस प्रकार का वरदान को देती हुई दिखलाई पड़े, उसी प्रकार का फल जानना चाहिए। जो स्वप्न में श्वेत छत्र, श्वेत चन्दन एवं कपूर आदि वस्तुओं को प्राप्त करते देखता है, उसे अभ्युदय प्राप्त होते हैं। यदि स्वप्न में लाल तलवार धारण किये वीर पुरुषों के जूते का दर्शन या लाभ हो तो यात्रा की सफलता समझना चाहिये।
जो व्यक्ति स्वप्न में श्मशान में सूखे वृक्ष एवं लकड़ी को देखता है अथवा यज्ञ के खूंटे पर अपने को चढ़ता हुआ देखता है वह विपत्ति को प्राप्त होता है। स्वप्न में जिस घर में लाक्षा रस, रोग अथवा वायु का अभाव देखा जावे तो घर में आग लगती है या चोरों द्वारा शस्त्र का घात होता है। स्वप्न में निर्जन चौराहा मार्ग में प्रविष्ट होता देखे पश्चात् जागृत हो जावे तो सुन्दर गुणयुक्त पुत्र की प्राप्ति उनकी स्त्री को नहीं होती। यदि स्वप्न में कोई व्यक्ति आसव और उसका पान करते हुए देखे अथवा नि:सहाय अपने को मरता हुआ देखे तो इस अशुभ स्वप्न की शांति के लिये सत्य वचन बोलना चाहिये, क्योंकि थोड़ा सा भी असत्य भाषण विकास के लिये हितकारी नहीं होता। जो व्यक्ति रात्रि के पिछले भाग में स्वप्न में यज्ञ स्तंभ गंधर्व शूल पर आरोहित होते देखता है वह कल्याण को प्राप्त नहीं होता। जो व्यक्ति श्रेष्ठ महल के परकोटे पर चढ़ता हुआ देखे, तो वह शेष लक्ष्मी का त्याग करता है, भयंकर कष्ट पाता है। स्वप्न में पक्व मांस दर्शन, ग्रहण और भक्षण व्यक्ति को घोर कष्टोत्पादक माना गया है। स्वप्न में वमन करते हुए देखने से मरण, दस्त लगना देखने से धन नाश और यान आदि के छत्र के ग्रहण करने से धन धान्य का अभाव होता है। स्वप्न में गाना देखने से रोना पड़ता है, नाचना देखने से वध वंधन होता है, हँसना देखने से शोक, पढ़ना देखने से कलह, बंधन देखने से स्थान प्राप्ति और छूटना देखने से परदेश गमन होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में तालाब, नदी, पर्वत, कलश और गृहों को शोकार्त देखता है उसे शोक बढ़ता है। स्वप्न में रक्त कमल, नील कमलों का दर्शन, ग्रहण और तोड़ना देखने से प्रयाण होता है। जटाधारी, सिरमुंडित, विरूपाकृति वाली मलीन नीले वस्त्र वाली स्त्री को स्वप्न में ग्लानिपूर्वक देखता है तो सामूहिक भय का सूचक है। तपस्वी पुण्डरीक तथा नवीन कमलों को स्वप्न में देखते ही जाग जाता है तो ग्लानि फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति भूमि पर विकीर्ण (पैâल जाना) और जल में नाश को प्राप्त हो जाना देखता है उस व्यक्ति को महान भय होता है। स्वप्न में लाल माला या लाल सूत्र के द्वारा जो अंग बांधा जावे तो उसी में क्लेश होता है। यदि स्वप्न में रुधिर से अभिषिक्त होता हुआ देखता है वह व्यक्ति चिरकाल तक धन धान्य से युक्त नहीं होता।
जो व्यक्ति स्वप्न में शीशा, राँगा, जस्ता, पीतल, रज्जू, सिक्का तथा मधु का दान करता देखता है उसका मरण निश्चय होता है। जो स्वप्न में प्रेतयुद्ध गर्दभ (गधा) युक्त रथ में आरूढ़ दक्षिण दिशा में जाता हुआ देखता है वह मनुष्य शीघ्र की मरण को प्राप्त होता है। यदि रात्रि के उत्तरार्ध में स्वप्न में कोई सूकरयुक्त नारी किसी की बंधी हुई गर्दन को खींचे तो उसकी पर्वत पर मृत्यु होती है। स्वप्न में कोई व्यक्ति गर्दभ, सूकर, ऊँट, भेड़िया सहित रथ से दक्षिण दिशा को जावे तो शीघ्र ही उस व्यक्ति का मरण होता है। स्वप्न में दिन में घर में प्रवेश करता हुआ देखे उसका धन नाश वा मृत्यु का निर्देश होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में काले वस्त्र धारणकर काले घोड़े पर सवार होकर खिन्न ही दक्षिण दिशा की तरफ गमन करता है वह निश्चय ही मृत्यु को प्राप्त होता है। भयंकर विकृति वाली काली स्त्री यदि स्वप्न में उत्तर या दक्षिण दिशा की तरफ खींचे तो शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है। जो व्यक्ति स्वप्न में अपने शरीर पर लता गुल्म, वृक्ष, वामी आदि का होना देखता है उसके शरीर का विनाश होता है। स्वप्न में जो व्यक्ति अपने मस्तक पर माला, बाँस, गुल्म, खजूर और हरे वृक्षों को उपजते देखता है उसकी एक सप्ताह में मृत्यु हो जाती है। यदि हृदय में वृक्षादिकों का उत्पन्न होना देखे तो उसका हृदय रोग से विनाश को प्राप्त होता है। जिस अंग में वृक्षादिकों का उत्पन्न होना स्वप्न में दिखलाई पड़ता है उसी अंग का बीमारी द्वारा विनाश हो जाता है।
शुक्ल पक्ष—प्रतिपदा को स्वप्न देखने से विलम्ब में फल मिलता है। शुक्ल पक्ष की द्वितीया—इस तिथि में स्वप्न देखने से विपरीत फल मिलता है, अपने को देखने से दूसरे को और दूसरे को देखने से अपने को फल मिलता है। शुक्लपक्ष की तृतीया—इस तिथि के स्वप्न का विपरीत फल मिलता है, फल की प्राप्ति देर से होती है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और पंचमी इन तिथियों में स्वप्न देखने से दो महीने से लेकर दो साल तक फल मिलता है। शुक्ल पक्ष की षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नौमी, दशमी इन तिथियों में स्वप्न देखने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है, स्वप्न सत्य निकलता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी और द्वादशी इन तिथियों में स्वप्न देखने से विलम्ब से फल मिलता है। शुक्लपक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी इन तिथियों में स्वप्न देखने से स्वप्न का फल नहीं मिलता स्वप्न मिथ्या होते हैं। पूर्णिमा तिथि के स्वप्न का फल अवश्य मिलता है।
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा—इस तिथि के स्वप्न का फल नहीं होता। कृष्ण पृक्ष की द्वितीया—इस तिथि के स्वप्न का फल विलम्ब से मिलता है। कृष्ण पक्ष की तृतीया और चतुर्थी तिथियों के स्वप्न मिथ्या होते हैं। पंचमी और षष्ठी तिथियों के स्वप्न दो माह बाद और तीन वर्ष के भीतर फल देने वाले होते हैं। कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का स्वप्न अति शीघ्र फल देता है। अष्टमी और नौवीं का स्वप्न विपरीत फल देता है। दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी इन तिथियों के स्वप्न मिथ्या होते हैं। चतुर्दशी तिथि का स्वप्न सत्य होता है और शीघ्र फल देता है। अमावस्या इस तिथि के स्वप्न का फल मिथ्या होता है।