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स्वभाव सहज होता है। आदत डाली जाती है। स्वभाव छूटता नहीं, आदत छोड़ी जा सकती है। स्वभाव चिरकाल तक एक जैसा रह सकता है, आदत परिवर्तित होती रहती है। स्वभाव संयोग अथवा परिस्थितिवश बदलता भी है, पर कुछ ही समय के लिये। जैसे पानी अग्नि के संयोग से गर्म हो भी गया तो भी अग्नि के हटने पर वह पुन: ठण्डा हो जाएगा। ठंडापन पानी का स्वभाव है। अत: बिना सयोंग के वह चिरकाल तक ठंडा रह सकता है। आत्मा स्वभाव से वीतराग है। अत: उस अवस्था में वह अनन्तकाल रह सकती हैं किन्तु राग द्वेष की स्थितियाँ बदलती रहती है। हम चाहें तो अपनी आदतों को सुधार कर स्वभाव में आनन्दपूर्वक स्थित हो सकते हैं।