==स्वर्गों में बाज उठे बाजे, इन्द्रों ने मुकुट झुकाए हैं== {” class=”wikitable” width=”100%” “- ” center”200px]] “” center”200px]] “” center”100px]] “} ”तर्ज—मंदिर में बाज रहे घंटे……” स्वर्गों में बाज उठे बाजे, इन्द्रों ने मुकुट झुकाए हैं। जिनवर का जनम हुआ भू पर, धनपति ने रतन लुटाए हैं।। टेक.।। देवों का परिकर लेकर, इन्द्र-इन्द्राणी आए हैं-२ । देखा जो शिशु तीर्थंकर, नेत्र हजार बनाये हैं। सुन्दरता लखकर प्रभुवर की, फिर भी तृप्ती ना पाये हैं।। जिनवर……।।१।। स्वर्गों के वस्त्राभूषण, इन्द्राणी ने पहनाए हैं। रत्नों के पलने में फिर, जिनवर को सभी झुलाए हैं।। प्रभु के संग खेलने को, सबके मन ललचाए हैं।। जिनवर……।।२।। माता का प्रभु दूध न पीते, फिर भी तो बलशाली हैं। स्वर्गों से भोजन आता है, महिमा यही निराली है।। ‘चंदनामती’ उन प्रभुवर के, मात-पिता हर्षाये हैं।। जिनवर……।।३।। center”100px]] [[श्रेणी:भगवान शान्तिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ से संबंधित भजन]]