मानव शरीर की रक्षा कई प्रकार से की जा सकती है । मुख्यत: तीन बातें प्रत्यक्ष देखी जाती हैं। शरीर की रक्षा त्वचा करता है । त्वचा की रक्षा ऋतु अनुसार बनाये हुए वस्त्र करते हैं । प्रकृति से रक्षा मकान करता है। शरीर के पोषण एवं शरीर की गंदगी निकालने के लिए नौ मल द्वार होते हैं, शरीर में असंख्यात् छिद्र होते हैं। उन छिद्रों को रोम कहते हैं। जैसे शरीर को पुष्ट (स्वस्थ) रखने के लिए सात्विक आहार की आवश्यकता होती है। त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक उत्पादनों से बने वस्त्र हमें स्वस्थ रखने में सहयोगी होते हैं । हमें स्वस्थता अनुभव कराते हैं। इसके विपरीत अशुद्ध भोजन, सिंथेटिक कपड़े हमें परेशानियों में लाकर डाल देते हैं और हम अस्वस्थ हो जाते हैं। भवन के निर्माण के समय भी यही सिद्धांत लागू होता है। वास्तु शास्त्र के नियमों से बना हुआ मकान घर में सुख—समृद्धि प्रदान करता है।इसके विपरीत जाने से नाना प्रकार की विघ्न बाधाएँ एवं रोगों का आगमन होता रहता है। भवन को शास्त्रों में जीवित माना गया है। जिस प्रकार मानव श्वांस लेता है उसी तरह भवन भी श्वांस लेता है। भवन की रचना में मस्तिष्क, हाथ,पैर, नाभि सभी मार्मिक अंग बनाये जाते हैं। निर्माण करते समय मार्मिक अंगों पर प्रहार हो जाता है तो वे अंग रोग ग्रसत हो जाता है। निर्माण के समय अशुद्ध सामग्रियाँ, गलत भूमि का चयन, अगल—बगल की जमीन अच्छी न होना, निर्माण कार्य में त्रुटि होना, अंग—भंग होना, श्रापित जगह होना इत्यादि का अति महत्व माना गया है। सुजान पुरुषों को इन सबका ध्यान रखते हुए नव निर्माण करना चाहिए। प्राकृतिक सामग्रियों को व्यवहार में लाना चाहिए प्राकृतिक सामग्रियाँ ऊर्जा का स्रोत होती हैं। कृत्रिम सामग्रियों से निर्माण न हो इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। निर्माण करते समय अज्ञानता वश अच्छे और बुरे दोनों नियमों को हम पालन कर लेते हैं । जिनके फल हमें मिश्रित मिलते हैं। जीव का स्वस्थ रहना एक स्वभाविक स्थिति है। अनेक कारणवश रोग उत्पन्न हो जाते हैं। यह रोग शनै:—शनै: बढ़ते हुए एक जटिल राज रोग धारण कर लेता है। इनको बुलाने में कहीं आपका भवन तो सहायक नहीं। यह मार्मिक विश्लेषण जरूर करना चाहिए। उत्तर और पूर्व दिशा प्राणी के सकारात्मक ऊर्जा एंव आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का स्रोत है।
भोडसो तपत्रुदंति सर्वेषां प्राणानादायात्—
सूर्य सभी प्राणियों के प्राणों का स्रोत है। सूर्य की किरणों के शरीर के सम्पर्व में आने से काफी रोग स्वत: चले जाते हैं। जब रोगी को श्वांस नहीं आती तो उसे ऑक्सीजन दी जाती है । उसी प्रकार इन दिशाओं से आने वाली हवाएँ, रौशनी सूर्य की किरणों का शरीर से सम्पर्वâ भी ऑक्सीजन से कम नहीं करता। मकान भी श्वांस लेता है। स्वस्थ रहता है। बींमार पड़ता है। वैज्ञानिक ने भी अपनी कसौटी पर इसे कसा है एवं भवन को जीवित माना है। यह वो विधान है जिसे परमपिता परमात्मा के द्वारा रचा गया है। जिस मकान के उत्तर—पूर्व दिशा बन्द होती है वहाँ कोई भी खिड़कियाँ नहीं होती । उस मकान में रहने वाले को अजीब—सी असुविधा महसूस होती है, जैसे श्वांस नहीं आने पर रोगी को महसूस होता है। मन में उत्साह खत्म हो जाता है। कार्यक्षमता में कमी आती है और बहुत कुछ महसूस होता है जिसका वर्णन करना सम्भव नहीं है। मकान बनाते समय पूर्व—उत्तर खुला हो, ज्यादा से ज्यादा खिड़कियाँ (हवा आने के लिए ज्यादा से ज्यादा खुला हो) हों, उस भवन में रहने वालों के लिए स्वस्थ एवं समृद्धि लाने का मार्ग माना गया है।
भूखण्ड का निर्माण होते पर पंच महाभूत शक्तियाँ अपना—अपना स्थान ग्रहण कर लेती हैं। चुम्बकीय शक्ति, आंतरिक ऊर्जा पाँचों तत्वों की आनुपातिक संतुलन अगर शास्त्र के अनुकूल होते हैं वहाँ रोग—शोक, आदि—व्याधि नजदीक नहीं आती हैं। संतुलित नहीं होने पर उन सभी का आगमन हो जाता है जिसे मानव पसंद नहीं करते हैं । हम इन मेहमानों को बुलाना नहीं चाहते मगर हमारी गल्तियों के कारण प्रकृति अपने—आप भेज देती है। ईशान कोण का दूषित होना शास्त्र के विपरीत आकार का होना क्या कर सकता है। कभी आपने सोचा है ? आर्थिक को कमजोर कर सकता है। मानसिक तनाव ला सकता है। घर के वातावरण को दूषित कर सकता है। परस्पर प्रेम को कटुता में बदल देता है। वंश वृद्धि में बाधक बन जाता है। सम्मान प्रतिष्ठा खण्डित हो जाती है। अपना शरीर अपने भाव तथा विचार एवं कार्यशैली भी अपना साथ नहीं देती। जिस तरह मनुष्य की परछाई मनुष्य से अलग नहीं होती, ठीक उसी तरह दिशाएँ दूषित होने से मानव की दशा बिगड़ जाती है एवं मानवता भूल जाता है। पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। मनुष्य की क्रियाएँ अद्र्धविक्षिप्त हो जाती हैं। ईशान कोण दूषित कैसे हो सकता है ? निमार्ण सम्बन्धी गल्तियाँ, अशुद्ध सामग्री, शास्त्र के विपरीत निर्माण कार्य जैसे ईशान का कटना, ईशान में लैट्रीन होना, अंडरग्राउण्ड टैंक होना, सीढ़ियाँ, ओवरहेड टैंक, ईशान कोण में स्टोर या कबाड़खाना एवं रसोई घर, जूता—चप्पल, झाडू, कचरा, आदि सामान रखने से ईशान कोण दूषित हो जाता है। इन सबके साथ ब्रह्म स्थान का अपना अस्तित्व है, ब्रह्म स्थान को आगन कहा जाता है। इन दोषों का उपचार या संशोधन करना अति आवश्यक है।