स्वाइन फ्लू से न हो परेशान, इन पांच घरेलू चीजों में छुपा है बचाव का समाधान
स्वाइन फ्लू का खौफ हर शहर, कस्बे और गांवों में दिखने लगा है। लोग डरे—सहमे हैं। इस कारण देश में सैंकडों मौतें हो चुकी हैं। इसके मरीजों से कई हॉस्पिटल के वार्ड भरे पड़े हैं। आम लोग इसका आसान समाधान चाहते हैं, जो मिल नहीं रहा। डॉक्टरों की माने तो ऐसे पांच घरेलू उपाय हैं, जो इस रोग से बचाव में कारगर हैं । जी हां, ये हैं— मास्क, कपूर , इलायची, दालचीनी और सरसों तेल। इनका प्रयोग कैसे और कब करना है, इसकी पूरी जानकारी …… स्वाइन फ्लू वायरस से होने वाला रोग है। इसके फैलने के कई कारण हैं। आमतौर पर यह सर्दी—खांसी, जुकाम और बुखार वाले मरीजों के संपर्क में आने से होता है। इसके वायरस हवा के माध्यम से श्वसन तंत्र के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इसलिए बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग जरूर करें। हालाकिं, इससे बचाव के लिए सबसे बेहतर एन—९५ मास्क होता है। इससे बचाव के लिए सामान्य मास्क कारगर नहीं होता। थ्री लेयर सर्जिकल मास्क को चार घंटे तक और एन—९५ मास्क को आठ घंटे तक लगाकर रख सकते हैं। ट्रिपल लेयर सर्जिकल मास्क लगाने से वायरस से ७० से ८० फीसदी तक बचाव रहता है।
कपूर और इलायची रख सकते हैं साथ
कपूर में जर्मस को मारने की क्षमता अधिक होती है । खासकर वायरल वैक्टीरिया पर यह काफी प्राभावी माना जाता है । कपूर बहुत खुशबूदार होता है। इसकी खुशबू और रासायनिक भिन्नता किसी देश में पैदा होने वाले कपूर के वृक्ष पर निर्भर करती है। कपूर के धुएं से आस पास का वातावरण अच्छा होता है।
एंटी— बैक्टीरियल होता है कपूर
कपूर नेफ्थलीन होता है। यह एंटी—बैक्टीरियल भी है। इलायची में एंटी—ऑक्सीडेंट होते हैं। जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करते हैं। इससे वायरल के अटैक के समय शरीर की रक्षा होती है। इसलिए इसे पोटली में रखकर सूंघते रहें तो स्वाइन फ्लू नहीं होगा।
रात में सोते और सुबह बाहर निकलते समय नाक में डालें सरसों का तेल
आमतौर पर रात को सोते समय सरसों की दो बूंद नाक में अवश्य डालें। घर से बाहर निकलते समय भी इसका प्रयोग करें तो फ्लू से बचाव संभव है। इसमें कैल्शियम और प्राकृतिक एंटी—ऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं। सरसों के तेल में ६० फीसदी मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है। इसमें ४२ फीसदी इरूसिक एसिड और १२ फीसदी ओलोक एसिड होता है। इसमें २१ फीसदी पोलीअनसैचुरेटेड होता है। इसमें से छह फीसदी ओमेगा—३ अल्फा— लिनोलेनिक एसिड और १५ फीसदी ओमेगा—६ लिनोलेनिक एसिड और १२ फीसदी सैचुरेटेड फैट होता है। नवजात शिशु का सरसों तेल से मालिश करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह होता है कि उनके अंदर प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो सके। सरसों का तेल एंटी—ऑक्सीडेंट होने के साथ जीवाणुरोधी होती है।
यह करें घरेलू उपाय
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए घर पर दालचीनी की चाय पिएं। तुलसी पत्ती और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पिएं। गुनगुना पानी पीना सही रहता है। हल्दी युक्त दूध या हल्दी, सैंधा नमक, तुलसी पत्ती पानी में उबालकर पिएं। लेमन टी या ब्लैक टी में नींबू डालकर अवश्य पिएं। तरल आहार का प्रयोग करें। ठंडा या गरम खाद्य पदार्थों का सेवन एक साथ न करें। नमकयुक्त गुनगुने पानी से स्नान करें। संतरे का सेवन कर सकते हैं।
यह लें डाइट
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए घर का बना ताजा खाना खाएं। पानी ज्यादा पिएं। ताजे फल और हरी सब्जियां खाएं। मौसमी, संतरा, आलूबुखारा, गोल्डन सेब, तरबूज और अनार अच्छे हैं। सभी तरह की दालें खाई जा सकती है। नींबू—पानी, सोडा, शर्बत दूध, चाय, सभी फलों के जूस, मट्ठा और लस्सी भी ले सकते हैं। बासी खाना और काफी दिनों से फ्रिज में रखी चीजें न खाएं। बाहर के खाने से बचें।
सावधान रहने की जरूरत
पांच साल से कम उम्र के बच्चे, ६५ साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को खास सावधानी बरतने की जरूरत है। फैफड़ों, किडनी या दिल की बीमारी, मस्तिष्क संबंधी (न्यूरोलॉजिकल) बीमारी, पर्विसन, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग और डायबिटीज के मरीजों को सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर गर्भावस्था के तीसरे चरण यानी २७ वें से ४० वें सप्ताह के बीच ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। शुरू स्वाइन फ्लू के लक्षणों में नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना है। मांसपेशियां में दर्द या अकड़न महसूस करना। सिर में भयानक दर्द। कफ और कोल्ड, लगातार खांसी आना। नींद पूरी नहीं होना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना। बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना। गले में खराश होना और इसका लगातार बढते जाना। वायरस शरीर के अंदर जाकर ऑक्सीजन के सेल्स को समाप्त करते हैं। वायरस जब एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के अंदर प्रवेश करता है तो इसके बाद तुरंत ही अपना असर नहीं दिखाते हैं। शरीर में प्रवेश करने के बाद ये अपनी संख्या को बढ़ाते हैं। चूंकि श्वसन तंत्र के जरिए शरीर में प्रवेश करने की वजह से ये वायरस फैफड़े में प्रवेश कर जाते हैं। इनके शरीर में पहुंचने के एक सप्ताह बाद ये अपना काम शुरू कर देते हैं। बदले स्वरूप में होने की वजह से इनकी रोकथाम नहीं हो पाती है। ऐसे में जब शरीर में इनकी संख्या बढ़ जाती है तो फैफड़ों के द्वारा ली जाने वाली सांस से ऑक्सीजन के सेल्स को डैमेज करने लगते हैं तो वहां से ब्लड का निकलना शुरू हो जाता है । इस स्थिति में आने के बाद संबंधित व्यक्ति या तो कोमा में चला जाता है। या फिर उसकी मौत हो जाती है।
ऐसे फैलता है वायरस
जब आप खांसते या छींकते हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुँह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं। इसकी आशंका तब और बढ़ जाती है जब इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो। एच एन वायरस स्टील, प्लास्टिक में २४ से ४८ घंटे, कपड़े और पेपर में आठ से १२ घंटे, टिश्यू पेपर में १५ मिनट और हाथों में ३० मिनट तक एक्टिव रहते हैं। इन्हें खत्म करने के लिए डिटर्जेंट ,अल्कोहल, ब्लीच या साबुन का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी मरीज में बीमारी के लक्षण इंफेक्शन के बाद एक से सात दिन में डेवलप हो सकते हैं।
स्वाइन फ्लू का आयुर्वेद में इलाज
इस बारे में राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. भगवान सिंह ने खास जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसमें चार—पांच तुलसी के पत्ते, पांच ग्राम अदरक , चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो — तीन बार— पिएं। गिलोय (अमृता) बेल की डंडी को पानी में उबाल या छानकर पिएं। गिलोय सत्व दो रत्ती यानी चौथाई ग्राम पौना गिलास पानी के साथ लें। उन्होंने कहा कि पांच—छह तुलसी पत्ते और काली मिर्च के दो—तीन दाने पीसकर चाय में डालकर दिन में दो—तीन बार पिएं। पौना गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी उबालकर पिएं। आधा चम्मच हल्दी गरम पानी या शहद में मिलाकर भी लिया जा सकता है। आधा चम्मच आवला पावडर को आधे कप पानी में मिलाकर दिन में दो बार पिएं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। त्रिभुवन कीर्ति रस या गोदंती रस या संजीवनी बूटी या भूमि आंवला लें। यह सभी एंटी—वायरल हैं। साधारण बुखार होने पर अग्निकुमार रस की दो गोली दिन में तीन बार खाने के बाद लें।
होमियोपैथिक इलाज
जब खांसी—जुकाम और हल्का बुखार महसूस हो रहा हो तब इनमें से कोई एक दवा डॉक्टर की सलाह से ले सकते हैं। इनमें एकोनाइट ३०, बेलेडोना ३०, ब्रायोनिया ३०, हर्परसल्फर ३०, रसटॉक्स, ३० की चार—पांच बूंदें, दिन में तीन से चार बार ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि अगर फ्लू के मरीज को उल्टियां आ रही हो और डायरिया भी हो तो नक्स वोमिका—३०, वल्सेटिला—३०, इपिकॉक—३० की चार—पांच बूंदें, दिन में तीन से चार बार ले सकते हैं। वहीं जब मरीज को सांस की तकलीफ ज्यादा हो और फ्लू के दूसरे लक्षण भी बढ़ रहे हों तो इसे फ्लू की एडवांस्ड स्टेज कहते हैं। इसके लिए आर्सेनिक एल्बम— ३० की चार—पांच बूंदे, दिन में तीन—चार बार लें। बेहतर यही होगा कि दवा के सेवन से पहले एक बार डॉक्टरी परामर्श अवश्य लें। होम्योपैथी की दवा लक्षणों के आधार पर बदली जा सकती है।