‘भोर की लाली , लाये खुशहाली रेशमी अहसास,
तितलियों के पास, फूलों की गंध,
हवा से अनुबंध रात की पीर पर खुशियां अब भारी हैं,
संकल्पों के आगे तो तम की सत्ता भी हारी है।’
कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभवों को लिये, कुछ कामनाएं पूर्ण करके , कुछ कामनाएं पूर्ण करने की चाह लिये, कुछ पाने के बाद अपने आपको धन्य मानकर और कुछ पाने की चाह मन में समाये, सफलता के गौरव से रोमांचित एवं सफलता प्राप्ति के लक्ष्य को पाने की अदम्य भावना के साथ सन् २०१३ का वर्ष बीत गया और नये वर्ष की पदचाप नजदीक आ गई है।
स्वागत है सन् २०१४ के रूप में नववर्ष का। आईये, अपने जीवन को ढोने की अपेक्षा जीने के लिये एक कारगर कदम बढ़ायें और सांसारिक जीवन से मोक्ष प्राप्ति के प्रतीकात्मक चौदह गुणस्थानों के समान ही अपने जीवन को आनंदमय बनाने हेतु निम्न १४ संकल्प लें और उन पर कायम रहते हुए अपने जीवन में निरंतर कामयाबी प्राप्त करें:—
१. हिम्मत ना हारिये:— जैसा कि कहा गया है—
‘हारिये ना हिम्मत, बिसारिये ना हरि नाम,
जांहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।’
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनुकूल—प्रतिकूल परिस्थितियां आती जाती रहती हैं। अनुकूल परिस्थितियां जहां हमें आनंद देती है सुकून देती हैं, वहीं प्रतिकूल परिस्थितियां मन को बैचेन कर जाती ह। यदि आपने प्रतिकूल परिस्थिति में भी हिम्मत का दामन थाम कर रखा है तो आपको कभी निराशा हाथ नहीं लगेगी हमारा जज्बा होना चाहिए—
‘ ना कोई शक ना कोई डर जीतेंगे हम बाजी हर।’
२. प्रभु ना बिसारिये :— प्राय: व्यक्ति पर जब सांसारिक दु:ख का साया मंडराता है तो वह भगवान का नाम विस्मरण कर जाता है और दु:ख में गमनीन होकर कभी—कभी अधर्म का मार्ग भी अपना लेता है, किंतु प्रभु नाम स्मरण करने से स्र्फूर्ति , चेतना, नवजीवन प्राप्त होता है इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए :—
प्रभु नाम जपने से नवजीवन मिलता है तन—मन का मुरझाया
उपवन खिलता है अंतर के कोने में इक दीपक जलता है।
३. हंसते रहें — हंसाते रहें :— यदि जिंदगी में सफल होना है , सुखी होना है तो आवश्यक है कि सभी परिस्थितियों में अपने आपकों प्रसन्न रखें । आपके चेहरे की मुस्कुराहट आपके संबंधियों को जीने का हौंसला दे सकती है और अपने दर्द के साथ उनके दर्द को भी बांट कर उन्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित कर सकती है ।
प्राय: होता है कि जब कोई हमारा अपना साथ छोड़ देता है, कोई अपना धोखा दे देता है तो हम जमाने के सामने आंसू बहाना प्रारंभ कर देते हैं किन्तु सच्चा जीवन तो वह है जो दूसरों के आंसू पोंछकर उन्हें खुशियाँ दे सकें इसीलिये तो कहा है—
अश्क अनमोल है, खो न देना कहीं इसकी हर बूंद है मौतियों की लड़ी
अश्क हर आँख से तुम चुराते रहो फासले कम करो दिल मिलाते रहो।
४. कर्मशील बनें— धर्मग्रंथों में लिखा गया है—‘‘कर्म किये जा फल की इच्छा मत करना इंसान’’इस पंक्ति को ध्यान में रखते हुए निरंतर सत्कर्म करते हुए प्रगति शिखर पर पहुँचने का प्रयास करें और आठों कर्मों से घिरी आत्मा को भी कर्मबंधन से मुक्त कर परमात्मा बनाने की शक्ति को पहचान्नें क्योंकि कर्म ही अमर है शेष सभी नश्वर है—‘‘कर्म अमर है , सब नश्वर है, कर्मों से इतिहास बना। कर्मवीर जग के गौरव हैं इनसे विश्व महान बना । ’’
५. परोपकारी बनें— जिस तरह नदी प्राणियों की प्यास बुझाने हेतु निरंतर बहती रहती है, वृक्ष पथिक को छाया और भूखे की भूख मिटाने हेतु फल प्रदान करते हैं, सूरज बगैर अनुपस्थिति के प्रतिदिन सारे जग को अंधकार से हटाकर प्रकाशमान करता है उसी तरह हमें भी अपने मन से सेवा और सहायता के द्वारा परोपकार के कार्य करते रहना चाहिए ।
मानव सेवा, शिक्षा सहायता, वृद्ध — सेवा, बाल—संरक्षण आदि कार्य इसी क्षेत्र में आते हैं। अपनी रोटी में से आधी रोटी पास बैठे भूखे व्यक्ति को देने की भावना ही परोपकार है। किसी ने सच लिखा है—
पास तेरे है दु:खिया कोई तूने मौज उड़ाई क्या भूखा प्यासा पड़ा
पडौसी तूने रोटी खाई क्या सबसे पहले पूछके मनवा अपनी रोटी खाया कर
मन मंदिर में अरे बावरे झाडू रोज लगाया कर।
६.प्रयत्नशील बनें— हम सभी जानते हैं कि जब बच्चे पहले पहल चलना सीखते हैं तो बार—बार गिरते हैं उठते हैं और चल पड़ते हैं हमें भी इसी प्रकृति का अनुसरण करते हुए नाकामयाबी से निराश होने की अपेक्षा बार—बार प्रयत्न करना चाहिए और हर पहली गलती को दूर करने का प्रयास करना पड़ेगा।
यदि हमें अपने व्यक्तित्व को निखारना है तो हमें साधना करनी पड़ेगी, प्रयत्नशील बनना होगा। जैसा कि निम्न पंक्तियों से दृष्टिगत होता है—
‘‘व्यक्तित्व को हमारे, गढ़ना हमें पड़ेगा सोपान साधना का, चढना हमें पड़ेगा। ’’
७. आत्म—चितन करें— जीवन को गौरवान्वित करने के लिये आवश्यक है कि हम आत्म—ाqचंतन करें। गुण अवगुणों की कसौटी पर स्वयं को परखें ।
प्रतिदिन कम से कम ५ मिनट का समय लेकर विचार करें कि आज दिन भर में आपने कौन सा ऐसा कार्य किया है अथवा ऐसी बात कही है जिसने किसी को मानसिक या शारीरिक रूप से हताहत किया है और यदि ऐसा कुछ आपने किया है तो उसका प्रायचित करें एवम् उस गलती को कभी ना दोहराने का संकल्प करें। नव वर्ष के पदार्पण पर हमें विचारना है—
‘‘आत्म—चंतन का यह समय आया, पा के नर तन को , क्या खोया—पाया।’’
८. मन, वचन पर नियंत्रण रखें— कहते हैं मन की गति वाचाल होती है और हवा से भी तेज होती है तथा वाणी का घाव तीर के घाव से भी गहरा होता है । ऐसे में सुखी जीवन उसी का होता है जो मन के घोड़े की लगाम कस कर रखें एवम् वाणी का उपयोग सोच समझ कर करें । हित, मित, प्रिय वचन ही एक सुखमय वातावरण का निर्माण कर सकते हैं। एक भजन की पंक्तियां दृष्टव्य हैं
मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन।
कटुता को मन से मार दो, मीठे वचन कहो वाणी का स्वर सुधार लो, बस हो गया भजन।
इतना ही नहीं जीवन में उतार—चढ़ाव आते ही रहते हैं, कभी जीत मिलती है तो कभी हार का सामना करना पड़ता है हमें कभी भी मन को नहीं हारने देना चाहिए एक अटल विश्वास बनायें रखना चाहिए क्योंकि —
‘‘मन के हारै हार है, मन के जीते जीत’’
९. समतावान बनें— मानव मन राग— द्वेषादि भावनाओं से परिपूरित है प्राय: हम सुख में प्रसन्नता एवम् दु:ख में हताशा प्रकट करते हैं। हमें जानना चाहिए कि सुख—दु:ख दोनों ही हमारे कर्मों के फलाधीन हैं। ये जीवन की गाड़ी के दो पहिये हैं ये ही हमें भगवान भी बना सकते हैं और शैतान भी।
आवश्यकता इस बात की है कि हम ईष्र्या — द्वेष आदि भावनाओं से उत्पन्न क्रोध, मान, माया, लोभादि कषायों पर नियंत्रण करें एवम् प्राणी मात्र के प्रति समता भाव रखें। जैसा कि छहढ़ाला में लिखा गया है—
‘‘सुख दु:ख में हम समता धारै, रहें अटल जिमि सदा अचल
न्याय मार्ग को लेश ना त्यागें, वृद्धि करें निज आत्मबल।
१०. सद्भावना का विकास करें—
‘‘भावना दिन रात मेरी सब सुखी संसार हो,
सत्य, संयम शील का व्यवहार हर घर द्वार हो।’’
उपरोक्त पंक्तियों को दृष्टिगत रखते हुए हमें अपने जीवन को दया, क्षमा, करूणा, प्रेम जैसे नैतिक गुणों से संस्कारित करना होगा। यदि हम सभी आपस में हिलमिल कर, प्रेम पूर्ण व्यवहार से, एक दूजे के बनकर रहेंगे तो इस धरती पर स्वर्ग लाया जा सकता है। अत: हमें अपने जीवन को शृं्रगारित करने के लिये सद्भावना रूपी प्रसाधन का उपयोग करना होगा।
जैन धर्मानुसार मेरी भावना का प्रतिदिन पाठ करें जो हमें जीवन में धारण करने योग्य मूल गुणों से परिचय कराता है जैसा कि लिखा है—
रहे भावना ऐसी मेरी सरल सत्य व्यवहार करूं
बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं
मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे,
दीन दु:खी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्रोत बहे।
११. साहसी एवम् आत्मविश्वासी बनें — औद्योगिकरण एवम् भौतिकतावादी इस युग में कदम—कदम पर खतरा प्रतीत होता है और यह खतरा तब और भी बढ़ जाता है जब कोई महिला कर्म क्षेत्र में कदम रखती है । चाहे महिला हो या पुरूष सभी को चाहिए कि वे संकट आने पर भी अपना साहस ना खोयें एवम् आत्म—ाqवश्वासी बन कर आने वाली विपरीत परिस्थितियों का भी डटकर मुकाबला करने की शक्ति बढ़ायें । क्योंकि यदि—
‘‘मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन।’’
१२. देश— धर्म और संस्कृति के प्रति प्रेम—भाव बढ़ायें— प्रत्येक मानव का दायित्व है कि वह अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे, धर्म के प्रति आस्थावान बनें एवम् देश— प्रेम की भावना को विकसित करें अर्थात् विश्व—बंधुत्व की भावना रखें। जैसा कि महिला संगठन का संकल्प है—
‘‘सद्भावों की फसल उगायें, संस्कार का हो सिंचन।
दूर भगाकर बुरी रीतियां, मानव सेवा का लें प्रण।
धर्म समाज की रक्षा हेतु रहें समर्पित हम हर क्षण।
देश भक्ति की शक्ति बढ़ाये, संस्कृति का हो संरक्षण ’’
१३. सबका सम्मान करें— कहा गया है सम्मान उसी को मिलता है जो दूसरों को भी सम्मान देता है । दूसरों की भावनाओं की कद्र करता है । सबकी बातों को ध्यान पूर्वक सुनता है , एवम् शांत चित्त होकर निर्णय देता है। अपने निर्णय किसी पर थोपता नहीं और ना ही किसी को निर्णय मानने के लिये बाध्य करता है ।
अहम् और वहम् को छोड़कर सोऽहं की भावना का विकास करें। यदि आपके हाथ में परिवार की कमान है तो आप परिवार के सभी सदस्यों को सम्मान दें। यदि आप किसी संस्था के महत्वपूर्ण पद पर हैं तो अपनी संस्था के प्रत्येक सदस्य के विचारों का स्वागत करें और उसे योग्यतानुसार सम्मान दें।
यदि आप किसी उद्योग के मालिक हैं तो अपने मातहतों की मजबूरी का फायदा ना उठाकर उनकी आवश्यकताओं को समझकर उन्हें उचित सम्मान देना चाहिए । कहने का तात्पर्य यह है कि आप बड़ा होने का मतलब समझें यदि आप दूसरों का सम्मान नहीं कर सकते तो आपकी स्थिति खजूर के पेड़ की तरह हो जायेगी—
‘‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर। ’’
१४. एक बनें और नेक बने— विविध भाषाओं के बोलने वाले व्यक्ति जिस देश में रहते हों , विविध वेशभूषा से जिनकी पहचान होती हो, विविध प्रांतों में बसने के बाद भी जिन्हें भारतवासी माना जाता है विविध विचारधाराओं के होते हुए भी जो राष्ट्रीयता की भावना से भरे हों ऐसे भारत देश के हम वासी हैं और हमें अपने भारतवासी कहलाने में गर्व होता है।
अध्यात्म हमारे देश की आधार शिला है, सांस्कृतिक विरासत इसकी अनमोल धरोहर है, अनेकता में एकता जिसकी आत्मा है ऐसे भारत में जन्म लेकर , दुर्लभ मनुष्य पर्याय पाकर भी यदि हम अंग्रेजों के समान फूट के बीज बोते गये एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहे तो नेहरू—गांधी के सपनों का सजीला भारत कंटीली झाड़ियों का देश बन जायेगा, और भगवान महावीर का अनेकांतवाद पुराणों के पृष्ठों में सिमट कर रह जायेगा। नेकी अर्थात् ईमानदारी एक ऐसा गुण है जो मनुष्य के जीवन को सोने में सुहागे की तरह निखारता है । हम भगवान से यही प्रार्थना करें—
‘‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम,
नेकी पर चलें और बदी से टलें , ताकि हंसते हुए निकले दम।’’
उपसंहार— उपरोक्त लेख के माध्यम से मेरा छोटा सा प्रयास है कि हम बीते समय की अच्छाईयों के आलोक में वर्तमान को क्रियाशील करें एवम् भविष्य के सुखद स्वरूप की कल्पना में सुंदर रंग भरे। सुधी पाठकों उपरोक्त संकल्प तो हर धर्म के हर प्राणी के लिये बताये गये हैं परन्तु जैसा कि हम जानते हैं कि जैन धर्म एक अहिंसा प्रधान, विश्व शांति की कल्पना को साकार करने वाला धर्म है।
चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद अब पुण्योदय से हमें मनुष्य पर्याय, जिन धर्म और जैन कुल की प्राप्ति हुई है , और जैन धर्म ही एकमात्र वह धर्म है जिसकी शरण पाने वाली आत्मा परमात्मा बन सकती है। अत: जैन धर्म की ध्वजा को निरन्तर फहराने के लिये हमारे संकल्प होना आवश्यक है क्योंकि —
‘‘यदि अवसर चूका तो भव, भव पछतायेगा, यह नर भव कठिन महा,
किस गति में जायेगा, नर भव पाया भी तो जिन कुल नहीं पायेगा
यह जीवन बीत रहा , अनगिनत विकल्पों में।’’
अत: हमें आगामी वर्ष के लिये निम्न संकल्पों को जैन धर्म की दृष्टि से पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए—
परिवार में बुजुर्गों के प्रति, समाज के सदस्यों के प्रति तथा राष्ट्र के नागरिकों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का ईमानदारी से धर्म का आश्रय लेकर पालन करें। यदि हम इतना कर सके तो भगवान महावीर के ‘‘ जियो और जीने दो’’ को सार्थक होते देख पायेंगें, महात्मा गांधी— नेहरू के सपनों को साकार कर पायेंगे, संतों की वाणी को हृदयंगम कर जैन समाज में बसंत सा वातावरण उपस्थित कर पायेंगे।
तो आईये सन् २०१३ में हुए तेरे— मेरे के व्यवहार को भुलाकर सन् २०१४ की मंगलमयी आगवानी करें। णमोकार महामंत्र के सुमिरन द्वारा जिन धर्म की ध्वजा को फहराते चलें।
आओ हम सभी मिलकर कुछ ऐसा करें कि —
‘‘नव वर्ष में कुछ ऐसा हो जाये कोई भूखा ना रहे भरपेट रोटियां खायें।
त्याग, तप बढ़े प्रतिपल, दिनरात तरुवर के जैसे मिले
जब इनका फल तो जीवन मुस्काये।
जिस तरह हम रोज करते हैं पूजा—
आराधना उसी तरह हम किसी गरीब के घर जायें,
रोशनी बांटने से कम नहीं होती एक दिया उनके अहाते में भी रख आयें।
पर्यावरण का हो संरक्षण, कन्या का भी मान बढ़े,
ध्येय हमारा हो कि सारे पढ़े और आगे को बढ़े फहरे पताका जैन धर्म की,
धर्म अहिंसा का हो सत्कार नववर्ष मंगलमय होवे जन—जन मन हो शांति अपार। ’’
उषा पाटनी
सहसंपादिका— ऋषभ देशना