आम को फलों का राजा कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मैंगीपेरा इण्डिका है। भारत की जलवायु आम के वृक्षों के उगने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है अत: भारत के कोने—कोने में आम के वृक्ष लगायें जाते हैं , बस बहुत ही ऊँचाई (पहाड़ों) पर इसके वृक्ष नहीं उगायें जाते। आम अनेकों आकृति वाले और दशहरी , लंगड़ा, सफेदा, चौंसा, बम्बईया, मलीहाबादी तथा फजली आदि सैकड़ों किस्म के होते हैं। बसन्त ऋतु में वृक्षों पर पुष्प तथा ग्रीष्म ऋतु में फल आतें हैं । आम का गूदा खाया जाता है या इसका शर्बत बनाकर पिया जाता है अथवा आम का गूदा निकाल कर मिल्क शेक बनाकर पिया जाता है। कच्चे आमों से आचार तथा अनेकों प्रकार की चटनियाँ बनायी जाती हैं। और उनके गूदे को सुखा कर अमचूर तैयार किया जाता हैं। आम की गुठली के भीतर स्थित गिरी को भी बेकार नहीं किया जाता । इसे भून कर और पीसकर चूर्ण बना लिया जाता है जिसका चिकित्सा में प्रयोग होता है।
पके आम में लगभग २० प्रतिशत शुगर तथा लगभग १ प्रतिशत प्रोटीन होती है, ०.२ प्रतिशत से ०.५ प्रतिशत अम्ल होते हैं जिसमें साइट्रिक एसिड, टार्टरिक एसिड तथा अल्प मात्रा में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ तथा ‘सी’ अधिक होता है। एक व्यक्ति के लिए एक दिन के लिए आवश्यक ५००० अन्तर्राष्ट्रीय इकाई विटामिन ‘ए’ केवल १०० ग्राम आम का गूदा खाने से प्राप्त हो जाता है। आम में खनिज जैसे पोटेशियम कार्बोनेट आदि पाये जाते हैं। इसकी छाल में टैनिन बहुत (१६.२० प्रतिशत) होता है। गुठली के गिरी में लगभग ७२ प्रतिशत स्टार्च, ८ प्रतिशत प्रोटीन तथा १० प्रतिशत वसा होती है।
पका हुआ आम मधुर, स्निग्ध, शीतल और बलबद्र्धक होता है, कच्चा आम अम्लीय होता है। कुछ दिनों तक पका आम खाने से शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है और आम के माँसवद्र्धक होने के कारण शरीर मोटा हो जाता है। आम शुक्राणुओं की दुर्बलता को दूर करता है, वीर्य को गाढ़ा करता है तथा वीर्यवद्र्धक होता है। दो—तीन माह तक पके आम खाना या एक गिलास आम का शर्बत पीने से लैंगिक शक्ति प्राप्त होती है और पुरुष में कामोत्तेजना होती है। आम का उपयोग करने से तंत्रिका तंत्र स्वस्थ बना रहता है । पका आम वायु को दूर करता है तथा यह मूत्रल और मृदु विरेचक है। आम रंग निखारने वाला और हृदय को शक्ति प्रदान करने वाला होता है। आम के पेड़ की छाल, उसकी पत्तियाँ, उसके फूल रक्तशोधक एवं व्रणरोपण होता है। बीजमज्जा (गिरी का गूदा) तथा पेड़ की छाल गर्भाशयशोथहर (गर्भाशय की सूजन दूर करने वाला) है। बीजमज्जा कृमिनाशक भी है।
निम्नलिखित रोगावस्थाओं में आम का प्रयोग किया जाता है।
लू लगना:— लू लग जाने पर कच्चे आम को भूनकर (गरम राख) में रखकर पका लें। फिर उसकी राख आदि को साफ करके उसका गूदा निकाल कर पानी में घोल लें। इसके बाद उसमें आवश्यकतानुसार चीनी या बूरा मिला कर उसमें थोड़ा सा भुना हुआ जीरा और नमक मिला लें। यह आम का पन्ना कहलाता है। इसे पीने से लू लगने में आराम पहुँचता है, रोगी की प्यास बुझती है।
दुर्बलता :— दो तीन माह तक प्रतिदिन एक गिलास आम का शर्बत या मिल्क शेक पीने से शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता दूर हो जाती है। मस्तिष्क की दुर्बलता के कारण उत्पन्न सिरदर्द, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना आदि लक्षण समाप्त हो जाते हैं और शरीर स्वस्थ हो जाता है।
कुरूपता:— लगातार दो तीन माह तक आम खाने या आम का शर्बत पीने से त्वचा का रंग साफ हो जाता है और रूप में निखार आकर चेहरे की चमक बढ़ जाती है।
रतौंधी या निशान्धता :— वटामिन ‘ए’ की कमी हो जाने से रतौंधी या निशान्धता हो जाती है अर्थात् रात को कम दिखने लगता है। कुछ दिनों तक नित्य प्रति आम का सेवन करने से धीरे—धीरे रात में दिखाई देने लगता है। रतौंधी में चूसने वाला आम अधिक लाभ करता है।
शुष्काक्षियपाक:— इस रोग में विटामिन ‘ए’ की कमी होने से नेत्रश्लेष्मकला अर्थात नेत्रगोलकों को आच्छादित करने वाली झिल्ली सूख जाती है और छिल सी जाती है। कुछ दिनों तक नियमित रूप से आम का सेवन करने से नेत्रष्लेष्मकला की यह दशा दूर हो जाती हैं।
अरूचि, अग्मिांद्य :— कुछ दिनों तक नियमित रूप से प्रात: एक प्याला आम रस में एक चाय की चम्मच भर अदरक का रस मिलाकर पीने से खुलकर भूख लगने लगती है और भोजन ग्रहण करने में रूचि उत्पन्न हो जाती हैं।
कब्ज होना :— रात को सोने से पहले २५० ग्राम आम खाने के बाद ऊपर से दूध पीने से सुबह को पेट साफ हो जाता है और कब्ज दूर हो जाता है।
दस्त आना:— आम के पेड़ की सूखी छाल हो पानी में उबालकर फिर उसे छानकर तथा ठण्डा करके रोगी को पिलाने से दस्तों में लाभ होता है।
खूनी पेचिश:— इसमें आम की गुठली के भीतर स्थित गिरी को पीसकर उसे मट्ठे में मिलाकर पिलाने से बहुत लाभ पहुँचता है।
हैजा:— आम के २५—३० ग्राम कोमल पत्तों को पीसकर रह जाने पर छानकर रोगी को पिलाने से हैजे में बहुत लाभ पहुँचता है। इसमें उल्टियाँ भी नहीं होती।
पेट में कीड़े होना:— आयु के अनुसार चौथाई से एक चाय की चम्मच भर आम की गिरी का चूर्ण गर्म पानी के साथ देने से पेट के सूत्रकृमि या चुन्ने मर जाते हैं जो विरेचक औषधि का प्रयोग करने पर बाहर आ जाते हैं।
हिचकी आना :— आम की पत्तियों को जलाने से उत्पन्न धुएँ से हिचकी आनी बन्द हो जाती है।
दाँत हिलना :— आम के ताजे पत्तों को चबा चबाकर थूकने से कुछ ही दिनों में दाँत मजबूत हो जायेंगे और हिलना बन्द हो जायेंगे।
पायरिया :— आम की गुठली की गिरी का महीन चूर्ण बनाकर उससे मंजन करने से पायरिया रोग ठीक हो जाता है।
मट्टी खाना:— बच्चों को मिट्टी खाने की आदत छुड़ाने के लिए उन्हें आम की गुठली की गिरी का चूर्ण खिलाने से उनकी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
सूखी खाँसी— पके हुए आम को राख में दबाकर भूनकर ठण्डा होने पर चूसने पर सूखी खाँसी ठीक हो जाती है।
पथरी:— आम के ताजे पत्तोें को छाया में सुखाकर कूट—पीसकर बहुत बारीक चूर्ण बना लें।
रोज सुबह बिना कुछ खाये— पीये बासी मुँह पानी के साथ कुछ दिनों तक ८ ग्राम चूर्ण की फकी लेने से पथरी टूट—टूट कर पेशाब के रास्ते बाहर निकल जायेगी।
अण्डकोष शोथ :— २५—३० ग्राम आम के पत्ते तथा १० ग्राम सेंधा नमक दोनों को पीसकर हल्का सा गरम करके अण्डकोष पर उनका लेप करने से अण्डकोष की सूजन उतर जाती है।
रक्तस्राव :— बवासीर से खून आना, मल त्याग के समय खून आना, मासिक धर्म के समय रक्त स्राव की दशाओं में आम के पेड़ की सूखी छाल को पानी में उबालकर, छानकर उसे ठण्डा करके रोगी को पिलाने से इनमें लाभ होता है।
जल जाना:— आम के पत्तों को जलाकर इसकी राख को जले हुए स्थान पर बुरकने से जला हुआ ठीक हो जाता है।
पामा या स्व्रैबीज :— आम के पेड़ की छाल से निकलने वाली राल में नींबू का रस निचोड़ कर रोगी को देने से पामा या स्व्कैबीज रोग में तथा अन्य त्वचा के रोगों में लाभ होगा।
नींद न आना :— रात को आम खाने व ऊपर से दूध पीने से अच्छी नींद आती है।