हँसना कषाय की अभिव्यक्ति है जबकि मुस्कुराना कषाय से मुक्ति
आचार्य श्री अनुभवसागर जी महाराज
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, प्रगतिनगर में ससंघ विराजमान आचार्य श्री अनुभव सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे पानी जिस से मिले वैसा अपना अलग रूप प्रदर्शित करता है, वैसे ही हमारी योग्यता को हम जिस दिशा में चाहे मोड़ सकते हैं। पानी मिट्टी में जाये तो कीचड़ बना दे, गन्ने के खेत मे जाये तो मिठास बन जाये, समुद्र में जाकर खारा हो जाये, सर्प के मुख में विष, सीप मैं मोती बन जाये। पानी तो वही है किंतु बाहरी पदार्थों के संयोग से उसका परिणमन भी बदल रहा है। ऐसे ही शरीर है, हम शरीर को जैसा चाहे ढाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि जिसका जिव्हा पर कंट्रोल नहीं उसका जीवन कभी उन्नत नही होता। आंख और जुबान के असंतुलन ने बड़े-बड़े तपस्वियों और योद्धाओं को धूल चटा दी है। शरीर धर्म का साधक भी है और बाधक भी।