अगर हड्डियां कमजोर हो जाएं तो इसे ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है। इसमें हड्डियां भुरभुरी हो जाती हैं। इस बीमारी में दर्द के अलावा हड्डियों के फैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। यह तकलीफ धीरे—धीरे बढ़ती जाती है। ऐसे में इसे आगे बढ़ने से रोकना जरूरी है, वरना इसका इलाज मुश्किल होता जाता है। पहले इसे बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब बदलती लाइफ स्टाइल में शारीरिक गतिविधियां कम होने की वजह से कम उम्र में भी लोगों को यह समस्या झेलनी पढ़ रही है। इन वजहों से होती है परेशानी:
१. जेनेटिकफैक्टर
२. प्रोटीन और कैल्शियम की कमी,
३. फिजिकली ज्यादा एक्टिव न होना।
४. बढ़ती उम्र ,
५. छोटे बच्चों का ज्यादा सॉफ्टड्रिंक्स पीना,
६. स्मोकिंग,
७. डायबिटीज , थायरॉयड जैसी बीमरियां,
८. दवाएं (दौरें की दवाएं, स्टेरॉयड आदि) ,
९. विटामिन डी की कमी ,
१०. महिलाओं में जल्दी पीरियड्स खत्म होना,
अन्तर को पहचानें, ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों के कमजोर होने से होता है, जबकि ऑर्थराइिटस जोड़ों के र्कािटलेज घिसने से होता है। हमारी बॉडी के सभी जोड़ों के अंदर एक तरह का कवर चढ़ा होता है, जिसे कार्टिलेज कहा जाता है। जब वह डैमेज होता है तो नर्वस का अंतिम हिस्सा एक्सपोज्ड हो जाता है और वजन पड़ने से उनमें दर्द होता है। हमारे देश में घुटने का ऑर्थराइिटस सबसे ज्यादा होता है। जिस व्यक्ति को ऑस्टियोपोरोसिस होता है, उसे ऑर्थराइटिस होने की संभावना ज्यादा होती है। कब है खतरा महिलाओं में ४५-५० साल के आसपास और पुरुषों में ५५ साल के आसपास यह समस्या हो सकती है। महिलाओं में एस्ट्रोजन की कमी से मेनोपॉज के बाद यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। सामान्य स्थिति में हारी हड्डियां करीब ४०-४५ साल तक मजबूत रहती हैं। हालाकि, कई बार पीरियड्स जल्दी खत्म होने या किसी और समस्या (हॉर्मोन आदि) की वजह से हड्डिया जल्दी कमजोर होने लगती हैं। नजर रखना जरूरी अगर आप बहुत जल्दी थक जाते हैं, शरीर में बार—बार दर्द होता हो, खासकर सुबह के वक्त कमर में दर्द हो। ऐसे में समस्या बढ़ने पर छोटी—सी चोट फैक्चर की वजह हो सकती है। इसके साथ ही अगर हल्की चोट लगने के बाद भी बहुत दिनों तक दर्द बना रहता है, तो चेकअप जरूर करवाना चाहिए। इनमें स्पाइन का फैक्चर सबसे कॉमन है। ४०-४५ साल की उम्र के दौरान फैक्चर होने पर फैक्चर के इलाज के साथ—साथ ऑस्टियोपोरोसिस की भी जांच करा लेनी चाहिए। कैसे होगा इलाज ? डाइटरू प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर डाइट लें। प्रोटीन के लिए , सोयाबीन, स्प्राउट्स, दालें मक्का और बीन्स आदि को खाने में शामिल करें, जबकि कैल्शियम के लिए दूध और दूध से बनी चीजें जैसे पनीर, दही आदि खाएं। दवाएं : ओरल और इंटरवीनल दवाएं दी जाती हैं। आमतौर पर विटामिन डी के सैशे या टैबलेट ६ हफ्ते तक दी जाती हैं। इसके अलावा कुछ टैबलेट के साथ ही जरूरत पड़ने पर इंजेक्शन भी दिए जाते हैं। सर्जरी : दर्द बहुत ज्यादा हो और मरीज को आराम नहीं हो रहा हो, तो कभी—कभी सर्जरी भी करनी पड़ती है। इसमें इंजेक्शन से हड्डी में बोन सीमेंट डाला जाता है। कई बार हड्डी को फिक्स करने के लिए भी सर्जरी की जाती है। इसके अलावा अगर मरीज को फैक्चर हो गया है, तो उसके लिए भी सर्जरी की जाती है।