परम् पूज्य मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने दिनांक ३ फरवरी ९७ को दिगम्बर जैन मंदिर, मालवीय नगर, जयपुर में प्रवचन के दौरान एक महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकर्षित किया। भारतवर्ष, जो कि मूलत: आर्यखण्ड है, का नाम हजारों वर्षों से ‘भारत’ चला आ रहा है । अंग्रेजों ने जब इस पर राज्य किया, तो उन्होंने इसका नाम ‘घ्ह्ग्a’ रख दिया। जब ‘भारत’ को रोमन में ‘Bharat’ आसानी से लिखा जा सकता है, तो फिर इसका नाम बदलकर रखने की क्या आवश्यकता थी ? जब विश्व के लगभग सभी देशों का नाम रोमन में भी वही है, जो मूल नाम है— जैसे : अमेरिका (America), जापान (japan), इंडोनेशिया (Indonesia) ,ब्राजील(Brazil), भूटान (Bhutan), अप्रâीका(Africa) नेपाल (Nepal), आस्ट्रेलिया (Australia), इटली (Etaly), इत्यादि तो भारत का नाम बदलकर क्यों ? हम गर्व से अपने आपकोकहलाते हैं । क्या भारतीय (Indian) कहलवाने से हम छोटे हो जायेंगे ? या हम पर पाश्चात्य संस्कृति का इतना रंग चढ़ चुका है कि हम आजादी का पचासवां वर्ष तो मना रहे हैं, परन्तु वापिस अपनी संस्कृति का ‘भारतीय’ नाम भूलकर व आंखें मूंदकर इंडिया India और इंडियन Indian’ के रूप में ही प्रस्तुत होते रहेंगे। यहIndia शब्द मूलत: अंग्रेजों का दिया हुआ है । India से मिलते—जुलते शब्द निम्नलिखित भी हैं :— Indict : अपराध या दोष लगाना Indigence: अतिदरिद्रता Indigestible न पचने योग्य Indignant कुपित अथवा रोषयुक्त Indignity अनादर, अशिष्ट व्यवहार Indirect कुटिल, टेढ़ा—मेढ़ा Indiscernible अप्रत्यक्ष, अदृष्टिगोचर Indiscipline अविनय, अनुशासनहीनता Indiscretion अविवेक Indispose अयोग्य बनाना Indisposition अरूचि, अस्वस्थता Indistinctive अस्पष्ट इन अंग्रेजी के शब्दों मेंके शुरु के चार वही हैं, केवल अंतिम अक्षर ‘A’ न होकर अन्य अक्षर हैं। इन शब्दों के अर्थ देखे जावें तो ये बहुत हल्के एवं दयनीय अर्थ दर्शाने वाले शब्द हैं। क्या इन्हीं मिलते—जुलते शब्दों के अर्थों की भावनाओं व विचार के आधार पर अंग्रेजों ने ‘भारत’ का नाम रोमन लिपि में रख दिया, जिसे हमने धीरे–धीरे गर्व के साथ अपना लिया। इस प्रकार भारत का नाम अंग्रेजों ने ऐसे शब्दों से मिलता—जुलता रखा, जिसका अर्थ इतने हल्के स्तर का व दयनीय है। यह भी एक विचारणीय विषय हो सकता है कि पिछले ३५० वर्षों से इस देश की दयनीय स्थिति इसी नाम की वजह से तो नहीं हो रही है ? अभी भी कुछ खास नहीं बिगड़ा है। हमें जैन मुनि श्री सुधासागर जी महाराज का हृदय से आभारी होना चाहिये कि उन्होंने इस अनदेखे विषय की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया एवं हमारी चिंतन—प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। हमारे देश की संस्कृति हजारों वर्षों पुरानी है। इसमें छोटे—मोटे उतार—चढ़ाव एवं परिवर्तन आते रहते हैं। मूलत: भारत आर्य—खंड है। सभी भारतवासी आर्य पुत्र हैं— चाहें वे किसी भी धर्म—हन्दू,सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी आदि के हों। हमारे पिता आर्य हैं, माता आर्य संस्कृति है तथा हम सभी ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के रूप में हैं। हमारे धर्म, क्रिया—कलाप व काम—काज अलग—अलग हो सकते हैं, परन्तु सभी एक ही कुटुम्ब के सदस्य हैं। अपने देश का नाम पुन: विश्व में ‘भारत— के रूप में स्थापित करना हमारी एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता होनी चाहिये। इस विषय पर जन—जागरण, चेतना, आन्दोलन इत्यादि तो हो ही सकते हैं, इसके अतिरिक्त इस संसद व विधान—सभाओं में भी प्रस्ताव पारित कर विश्व के प्रत्येक देश, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व की सभी संस्थाओं में अपना नाम ‘भारत— के रूप में दर्ज करा सकते हैं। आइये ! इस आजादी के पचासवें वर्ष में हम सब मिलकर संकल्प लें कि इसी वर्ष जब आजादी की ५० वीं वर्षगांठ लाल किले से झंडा फहराकर मनावें, तब तक यह देश सम्पूर्ण रूप से से बदलकर पुन: ‘भारतवर्ष’ हो जावें।