हरिवर्ष क्षेत्र का विस्तार महाहिमवन् से दूना अर्थात् ८४२१-१/१९ योजन ३३६८४२१०-१०/१९ मील है। इस क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि की व्यवस्था है। यह क्षेत्र हानि वृद्धि से रहित एक सदृश ही रहता है। इस क्षेत्र के बिल्कुल बीच में ‘विजयवान्’ नाम का नाभिगिरि स्थित है, उसका वर्णन ‘शब्दवान्’ नाभिगिरि के सदृश है। यहाँ पर सर्व दिव्य वर्णन से संयुक्त चारण देव रहते हैं। महापद्म सरोवर के उत्तर भाग संबंधी तोरण द्वार से हरिकांता नदी निकलकर पर्वत के ऊपर से जाती है। यह नदी एक हजार छह सौ पाँच योजन अर्थात् १६०५-५/१५ योजन प्रमाण पर्वत के ऊपर आकर नाली के द्वारा कुंड में गिरती है। पश्चात् वह नदी दो कोस से नाभिगिरि को छोड़कर उसकी प्रदक्षिणा करते हुए के समान पश्चिम की ओर जाती है। यह नदी छप्पन हजार परिवार नदियों के साथ जम्बूद्वीप की वेदिका की गुफा में होती हुई पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती है। विशेषता यह है कि जहाँ कुंड में यह नदी गिरती है वहाँ पर कुंड में स्थित पर्वत पर हरिकांता देवी का महल है। बाकी वर्णन पूर्ववत् है। कुंड का विस्तार आदि प्रमाण रोहित् नदी की अपेक्षा दूना है।