समय-चतुर्थकाल प्रारंभ होने में चौरासी लाख पूर्व वर्ष, तीन वर्ष, आठ माह, एक पक्ष काल शेष रहने पर
जन्मभूमि-अयोध्या आगमन-सर्वार्थसिद्धि विमान से
पिता-चौदहवें कुलकर नाभिराय माता-महारानी मरुदेवी
गर्भावतरण-आषाढ़ कृष्णा द्वितीया। उत्तराषाढ़ नक्षत्र
जन्म-चैत्र कृष्णा नवमी, उत्तराषाढ़ नक्षत्र
नाम-ऋषभदेव, वृषभदेव, आदिनाथ, पुरुदेव, आदिपुरुष, आदिब्रह्मा, प्रजापति, युगस्रष्टा आदि।
आयु-चौरासी लाख पूर्व वर्ष
शरीर ऊँचाई-पाँच सौ धनुष (दो हजार हाथ)
वंश-इक्ष्वाकु कुमार काल-बीस लाख पूर्व वर्ष
कार्य विशेष-असि, मषि आदि षट्कर्मों का सर्वप्रथम निर्देश, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र वर्ण की व्यवस्थापना।
भगवान की रानियाँ-यशस्वती, (नन्दा) सुनन्दा।
पुत्र-पुत्रियाँ-चक्रवर्ती भरत, कामदेव बाहुबली आदि एक सौ एक पुत्र तथा ब्राह्मी, सुन्दरी दो कन्याएँ।
राज्यकाल-त्रेसठ लाख पूर्व वर्ष वन गमन साधन-सुदर्शना पालकी
दीक्षा दिवस-चैत्र वदी नवमी दीक्षास्थल-सिद्धार्थ वन (प्रयाग)
दीक्षा समय उपवास-षट्मास दीक्षा वन-वटवृक्ष के नीचे
सहदीक्षित-कच्छ, महाकच्छ आदि चार हजार राजागण
आहार लाभ-एक वर्ष उनतालीस दिन बाद हस्तिनापुर में
आहार दिन-वैशाख शुक्ला तृतीया (अक्षयतृतीया)
दानतीर्थ प्रवर्तक-राजा सोमप्रभ और राजा श्रेयांसकुमार
आहार दानविधि ज्ञान-राजा श्रेयांस को पूर्व के आठवें भव का स्मरण (राजा वङ्काजंघ, रानी श्रीमती ने चारण ऋद्धिधारी मुनियों को आहार दिया तथा राजा वङ्काजंघ का जीव आदिनाथ तीर्थंकर और रानी श्रीमती का जीव राजा श्रेयांस हुआ)
नवधाभक्ति-पड़गाहन करना, ऊँचे स्थान पर विराजमान करना, चरण प्रक्षालन, अष्टद्रव्य से पूजन, नमस्कार, मन, वचन, काय और आहार की शुद्धि कहना।
देवताओं द्वारा पंचाश्चर्यवृष्टि-रत्नवृष्टि, पुष्पवृष्टि, शीतलवायु, दुंदुभिवाद्य, अहो दानं आदि प्रशंसा वाक्य।
बरसे हुए रत्नों की गणना-दातारों के आंगन में अधिक से अधिक से साढ़े बारह करोड़, कम से कम साढ़े बारह लाख रत्नों की वर्षा।
आहारदान के प्रारंभ से आज तक का काल-कुछ अधिक कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण।
भगवान का छद्मस्थकाल-एक हजार वर्ष।
केवलज्ञान स्थान-पुरिमताल नगर का बाह्य उद्यान, प्रयाग
न्यग्रोध-वटवृक्ष के नीचे।
केवलज्ञान तिथि-फाल्गुन कृष्णा एकादशी, उत्तराषाढ़ नक्षत्र।
भगवान के समवसरण में-चौरासी गणधर, एक लाख अड़सठ हजार मुनि, तीन लाख पचास हजार आर्यिकाएं, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएं,
उपदेश काल-लगभग एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वर्ष तक
मोक्षस्थान-वैâलाशपर्वत। सह मुक्त-एक हजार मुनिगण।
मोक्षतिथि-माघ कृष्णा चतुर्दशी।
जन्मभूमि-हस्तिनापुर नगर
पिता-राजा सोमप्रभ माता-लक्ष्मीमती
चाचा-राजा श्रेयांस लौकिक पद-भरत चक्रवर्ती के सेनापति रत्न
ससुराल-वाराणसी नगरी ससुर-राजा अकंपन
सास-सुप्रभा देवी
स्वयंवर विधान-अनादिसिद्ध स्वयंप्रभा का प्रादुर्भाव, स्वयंवर में सुलोचना द्वारा जयकुमार का वरण
जयकुमार वरण विरोध-भरत पुत्र अर्ककीर्ति द्वारा विरोध, युद्ध प्रसंग, जयकुमार की विजय
संकट निवारण-गंगानदी में मगर द्वारा जयकुमार के हाथी का पकड़ा जाना पुन: सुलोचना के ध्यान के प्रभाव से गंगा देवी द्वारा रक्षा होना
पारमार्थिकपद-भगवान ऋषभदेव के समवसरण में इकहत्तरवें गणधर (दिगम्बर महामुनि)
सुलोचना पट्टदेवी-आर्यिका दीक्षा, ग्यारह अंग के ज्ञान से विभूषित
परलोकगमन-जयकुमार का मुक्तिलाभ, सुलोचना को स्वर्ग लाभ।
जन्मभूमि-हस्तिनापुर नगर
लौकिकपद-चतुर्थ चक्रवर्ती,कामदेव आयु-तीन लाख वर्ष
कुमार काल-५० हजार वर्ष मांडलिक काल-५० हजार वर्ष
दिग्विजय काल-१० हजार वर्ष चक्रीकाल-९० हजार वर्ष
वैराग्यनिमित्त-देवों द्वारा रूप की परीक्षा में गर्व हानि
दीक्षा-दैगंबरी दीक्षा
परीषहजय-भयंकर कुष्ठ आदि रोगों की उद्भूति, देवों द्वारा परीक्षा में शरीर के प्रति नि:स्पृहता, धर्म के प्रभाव से रोगों का अभाव
संयमकाल-एक लाख वर्ष
पारमार्थिकपद-वैâवल्य प्राप्ति, मुक्तिपद लाभ
समय-पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ स्वामी के तीर्थ में।
जन्मभूमि-कुरुजांगल देश, हस्तिनापुर नगरी
पिता-राजा अश्वसेन माता-ऐरादेवी
गर्भ दिवस-भाद्रपद वदी सप्तमी
जन्मदिवस-ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी नाम-शांतिनाथ
चिन्ह-हरिण वर्ण-स्वर्ण सदृश
आयु-एक लाख वर्ष ऊँचाई-चालीस धनुष (१६० हाथ)
लघुभ्राता-सौतेली माता यशस्वती से जन्मे चक्रायुद्ध कुमार
कुमार काल-पच्चीस हजार वर्ष
मांडलिक राज्यकाल-पच्चीस हजार वर्ष
चक्रवर्ती का वैभव-चक्र, छत्र, तलवार, दण्ड, काकिणी, चर्म, चूड़ामणि ये सात अचेतन रत्न तथा पुरोहित, सेनापति, स्थपति, गृहपति, कन्यारत्न (स्त्री), गज और अश्व ये सात चेतन रत्न ऐसे चौदह रत्न। नवनिधियाँ, छ्यानवे हजार रानियाँ, बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा, साढ़े तीन करोड़ बंधुकुल, अठारह करोड़ घोड़े, चौरासी लाख हाथी, तीन करोड़ गायें, चौरासी करोड़ उत्तम वीर, अनेकों करोड़ विद्याधर, अट्ठासी हजार म्लेच्छ राजा, छ्यानवे करोड़ ग्राम, पचहत्तर हजार नगर, सोलह हजार खेट, चौबीस हजार कर्वट, चार हजार मंटब, अड़तालीस हजार पत्तन इत्यादि।
साम्राज्य पद काल-पच्चीस हजार वर्ष
वैराग्य निमित्त-दर्पण में दो प्रतिबिंब का दिखना
दीक्षा स्थान-हस्तिनापुर का सहस्राम्र्र वन।
दीक्षातिथि-ज्येष्ठ कृष्णा १४, भरणी नक्षत्र
प्रथम आहार दाता-मन्दिरपुर के राजा सुमित्र
छद्मस्थ काल-सोलह वर्ष
केवलज्ञान स्थान-हस्तिनापुर का सहस्राम्र वन
दीक्षा वृक्ष-नंद्यावर्त
तिथि-पौष कृष्ण दशमी
समवसरण में-छत्तीस गणधर, बासठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ आर्यिकाएँ, दो लाख श्रावक, चार लाख श्राविकाएँ, असंख्यात देव देवियाँ, संख्यात तिर्यंच।
लौकिक पद-पंचम चक्रवर्ती और बारहवें कामदेव
पारमार्थिक पद-सोलहवें तीर्थंकर
योग निरोध काल-एक माह
मोक्षदिवस-ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी
जन्मभूमि-कुरुजांगल देश, हस्तिनापुर नगर
पिता-राजा सूरसेन। माता-श्रीकांता
वंश-कुरुवंश गर्भ दिवस-श्रावण कृष्णा दशमी
जन्म दिवस-वैशाख शुक्ल प्रतिपदा नाम-कुंथुनाथ
चिन्ह-बकरा वर्ण-स्वर्ण
आयु-पंचानवे हजार वर्ष
शरीर की ऊँचाई-पैंतीस धनुष (१४० हाथ)
कुमार काल-तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष।
मांडलिक राज्यकाल-तेईस हजार सात सौ वर्ष
चक्रवर्ती काल-तेईस हजार पाँच सौ पचास वर्ष
साम्राज्य वैभव-चौदह रत्न, नवनिधि आदि
लौकिक पद-छठे चक्रवर्ती और तेरहवें कामदेव
पारमार्थिक पद-सत्रहवें तीर्थंकर
वैराग्य निमित्त-पूर्वभव स्मरण
दीक्षावन-हस्तिनापुर का सहेतुक वन
दीक्षा वृक्ष-तिलक वृक्ष
दीक्षा तिथि-वैशाख शुक्ला प्रतिपदा
सहदीक्षित-एक हजार राजा
प्रथम आहार दाता-हस्तिनापुर के राजा धर्ममित्र
छद्मस्थकाल-सोलह वर्ष
केवलज्ञान स्थान-सहेतुक वन (दीक्षा वन) तिलक वृक्ष के नीचे
केवलज्ञान तिथि-चैत्र शुक्ला तृतीया
समवसरण में-पैंतीस गणधर, साठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ पचास आर्यिकाएं, दो लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएं, असंख्यात देव- देवियाँ, संख्यात तिर्यंचगण
केवलीकाल-तेईस हजार सात सौ चौंतीस वर्ष
योग निरोध काल-एक मास मोक्षस्थान-सम्मेदशिखर
मोक्षदिवस-वैशाख शुक्ला प्रतिपदा
जन्मभूमि-हस्तिनापुर
पिता-राजा सुदर्शन माता-मित्रसेना
वंश-सोमवंश गर्भावतरण-फाल्गुन कृष्णा तृतीया
जन्म-मगसिर शुक्ला चतुर्दशी आयु-चौरासी हजार वर्ष
शरीर ऊँचाई-तीस धनुष (१२० हाथ) वर्ण-स्वर्ण
कुमार काल-इक्कीस हजार वर्ष राज्य-इक्कीस हजार वर्ष
लौकिक पद-सातवें चक्रवर्ती, चौदहवें कामदेव
पारमार्थिक पद-अठारहवें तीर्थंकर चक्रीपदकाल-इक्कीस हजार वर्ष
वैराग्य निमित्त-मेघ विलय का देखना दीक्षा वन-हस्तिनापुर का सहेतुक वन
दीक्षा तिथि-मगसिर सुदी दशमी
प्रथम आहार दाता-चक्रपुर के राजा अपराजित
छद्मस्थ-सोलह वर्ष
केवलज्ञान स्थल-सहेतुक वन दीक्षा एवं केवलज्ञान वृक्ष-आम्र वृक्ष
समवसरण में-तीस गणधर, पचास हजार मुनि, साठ हजार आर्यिका, एक लाख साठ हजार श्रावक, तीन लाख श्राविका
केवली काल-बीस हजार नौ सौ चौरासी वर्ष।
योगनिरोध काल-एक माह
मुक्ति स्थल-सम्मेदशिखर
मुक्ति दिवस-चैत्र कृष्णा अमावस्या
अब तक व्यतीत काल-सौ अरब, पैंसठ लाख, छयासी हजार पाँच सौ वर्ष
जन्मभूमि-हस्तिनापुर
पिता-राजा कार्तवीर्य माता-तारादेवी
नाम-सुभौम कुमार
पोषण स्थल-कौशिक ऋषि के आश्रम के तल घर में पालनपोषण।
चक्र उत्पत्ति-थाली द्वारा चक्ररत्न का प्रादुर्भाव।
लौकिकपद-अष्टम चक्रवर्ती
कार्य-जमदग्नि के पुत्र परशुराम का वध, इक्कीस बार पृथ्वी को ब्राह्मण रहित करना
आयु-साठ हजार वर्ष ऊँचाई-२८ धनुष (११२ हाथ)
मरण निमित्त-णमोकार मंत्र के अपमान से ज्योतिष्क देव द्वारा मरण
परलोक गमन-सप्तम नरक प्राप्ति
अन्तराल-अरनाथ तीर्थंकर के बाद दो सौ करोड़ वर्ष के अनंतर
जन्मस्थान-हस्तिनापुर
लौकिकपद-महापद्म नवमें चक्रवर्ती पारमार्थिक पद-मुक्तिगमन
महापद्म के प्रमुख दो पुत्र-पद्म और विष्णु कुमार
पद्मराज-पिता के राज्य के संचालक राजा
विष्णु कुमार–पिता के साथ दीक्षित, विक्रिया ऋद्धिधारी महामुनि
हस्तिनापुर के राजा-पद्म महाराज
उपसर्ग-अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों के संघ पर बलि आदि चार मंत्रियों द्वारा अग्निकांड उपसर्ग
उपसर्ग निवारण-गुरु की आज्ञा से विक्रिया ऋद्धियुक्त विष्णुकुमार मुनि द्वारा उपसर्ग निवारण, सात सौ मुनियों की रक्षा होना।
रक्षा दिवस-श्रावण शुक्ला पूर्णिमा
आज तक व्यतीत काल-लगभग पैंसठ लाख छियासी हजार पाँच सौ वर्ष
जन्मभूमि-हस्तिनापुर
नाम–गुरुदत्त महाराज
दीक्षा से पूर्व-राज्य संचालन। प्रजा रक्षार्थ गुफा में व्याघ्र को अग्नि लगवाकर मरवाना
व्याघ्र का जीव-कपिल ब्राह्मण हुआ
दीक्षा-राजा गुरुदत्त का दिगम्बर मुनि हो जाना
प्रति हिंसा-कपिल ने खेत में खड़े ध्यानस्थ गुरुदत्त मुनिराज को सेमल की रुई लपेटकर आग लगा दी।
उपसर्ग विजय-मुनिराज उपसर्ग जीतकर केवली हो गये।
पारमार्थिक पद-मुक्तिलाभ
राजा शान्तनु के पुत्र-पाराशर
पाराशर की स्त्रियां-गंगा और गुणवती
गंगा से गांगेय पुत्र (भीष्म पितामह) गुणवती से-व्यास पुत्र, व्यास के तीन पुत्र-धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर।
धृतराष्ट्र की गांधारी पत्नी से-दुर्योधन, दु:शासन आदि सौ कौरव पुत्र
पाँडु के कुन्ती पत्नी से-युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन तथा माद्री पत्नी से नकुल और सहदेव ये पाँच पाण्डव
विदुर-कौरव-पांडव के चाचा
गांगेय-कौरव-पाण्डव के पिता (व्यास) के बड़े भाई (कौरव पांडव के पितामह)
द्रोणाचार्य-कौरव, पाण्डवों के गुरु
हस्तिनापुर का राज्य-गांगेय द्वारा कौरव-पांडवों के लिए राज्य का अाधा-आधा विभाग
कौरवों के दुर्व्यवहार-कूटनीति से लाक्षागृह में पांडवों को भेजना, पुन: उसमें छद्म से आग लगवाना
पांडवों का पुण्य-विदुर द्वारा बनवाई गई सुरंग से बाहर निकल जाना
द्रौपदी स्वयंवर-द्रौपदी की अर्जुन के गले में माला डालना किन्तु पापोदय से माला के पुष्प बिखरने से पंचभर्तारी का लोकापवाद।
कौरव पांडव मिलन-पांडवों का माकन्दीपुर से पुन: हस्तिनापुर आगमन
अर्जुन को लाभ-नारायण श्री कृष्ण की बहिन सुभद्रा से विवाह आदि।
जुआ व्यसन से हानि-कौरव-पांडव का जुआ खेलना, पांडवों की हार, पांडवों का बारह वर्ष तक वन प्रवास
द्रौपदी अपमान-दु:शासन द्वारा द्रौपदी का अपमान
महायुद्ध-राज्य हेतु कौरव-पांडवों का महाभयंकर संग्राम
युद्ध विजय-नारायण श्री कृष्ण द्वारा जरासंघ प्रतिनारायण का वध नारायण श्रीकृष्ण की विजय, पांडवों की विजय, दुर्योधन आदि कौरवों की हार
हस्तिनापुर राज्य-पांडवों द्वारा सुखपूर्वक पूर्ण राज्य का उपभोग
उपसर्ग विजय-पांडव दिगम्बर मुनि अवस्था में शत्रुंजय पर्वत पर ध्यानलीन थे, उस समय दुर्योधन के भानजे ‘कुर्युधर’ द्वारा लोहे के गरम-गरम आभूषण पहनाने के घोर उपसर्ग से तीन की मुक्ति और दो का सर्वार्थसिद्धिगमन। उपसर्ग, शंतिपूर्वक सहन करने से युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन का अन्तकृत्केवली होकर मुक्ति गमन और नकुल सहदेव मुनि का सर्वार्थ सिद्धि गमन।
आज तक व्यतीत काल-लगभग छयासी हजार पाँच सौ वर्ष हुए हैं।