अनादिनिधन-मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बीचों बीच में प्रथम द्वीप नाम जम्बूद्वीप है।
इसमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं।
हम और आप इस भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में हैं।
जम्बूद्वीप के शाश्वत ७८ जिनमंदिर-इस जम्बूद्वीप में बीचोंबीच में सुदर्शनमेरु पर्वत है।
इसमें भद्रसाल, नंदन, सौमनस और पाण्डुक ये चार वन अर्थात् सुन्दर-सुन्दर उद्यान हैं।
इनमें ४ दिशाओं के ४-४ जिनमंदिर ऐसे १६ जिनमंदिर हैं। इस पर्वत की विदिशा में चार गजदंत के ४ जिनमंदिर हैं। इस पर्वत के उत्तर-दक्षिण में जम्बूवृक्ष, शाल्मलि वृक्ष के दो मंदिर हैं।
इस सुमेरु के पूर्व-पश्चिम में ८-८ वक्षार ऐसे १६ वक्षारों के १६ जिनमंदिर हैं।
हिमवान आदि छह पर्वतोें-कुलाचलों के ६ जिनमंदिर है। सुमेरु के पूर्व में १६ विदेह देशों के १६ एवं पश्चिम में १६ विदेहों के १६ ऐसे ३२ विदेह क्षेत्रों में बीचोंबीच में एक-एक विजयार्ध ऐसे ३२ विजयार्ध पर्वतों के ३२ जिनमंदिर हैं।ऐसे ही भरत एवं ऐरावत क्षेत्र के बीच में १-१ विजयार्ध पर्वत के २ जिनमंदिर हैं।
इस प्रकार सुमेरु के १६±गजदंत के ४ ± जंबूवृक्ष आदि २±सोलह वक्षार के १६±छह कुलाचलों के ६±विदेह के बत्तीस विजयार्ध के ३२±भरत-ऐरावत के विजयार्ध के २·७८ जिनमंदिर हैं।
देवभवन-यहाँ हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप में हिमवान् पर्वत के १० आदि ऐसे १२० देवभवन हैं। जम्बूद्वीप के प्रवेश में जम्बूद्वीप रक्षक अनावृत देव का एक भवन है। इन १२३ देवभवनों में गृह चैत्यालय के समान एक-एक जिनप्रतिमा विराजमान हैं अत: १२३ जिनप्रतिमाएँ हैं।
छह समवसरण-पूर्वविदेह में श्री सीमंधर स्वामी, श्री युगमंधर स्वामी एवं पश्चिम विदेह में श्री बाहु-स्वामी और श्री सुबाहुस्वामी तथा दक्षिण में भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड की अयोध्या में भगवान ऋषभदेव तथा ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में श्री बालचन्द्र तीर्थंकर भगवान ऐसे छह भगवन्तों के छह समवसरण के प्रतीक यहाँ गंधकुटी के रूप में चतुर्मुखी छह प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
जम्बूद्वीप में २२१ जिनप्रतिमाएं-इस प्रकार जम्बूद्वीप में ७८ जिनमंदिर, १२३ देवभवन के जिनमंदिर व छह समवसरण की ६ चतुर्मुखी प्रतिमाएं ऐसी ७८±१२३± ६·२०७ जिनप्रतिमाएं विराजमान है तथा गंगा-सिंधु आदि १४ महानदियों के गोमुख से गिरने के नीचे गंगा आदि देवी के महल की छत पर १४ जटाजूट सहित जिनप्रतिमाएं विराजमान हैं। ऐसे कुल (२०७±१४·२२१) जिनप्रतिमाएं हैं।
इन सभी जिनप्रतिमाओं को मेरा नमस्कार होवे।
जम्बूद्वीप में ७८ जिनमंदिर, ६ भोगभूमि, ३४ कर्मभूमि के ३४ आर्यखण्ड, प्रत्येक भूमि में ५-५ म्लेच्छ खंड ऐसे १७० (३४²५·१७०) हैं। हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी छह पर्वतों पर १-१ ऐसे छह सरोवर हैं। पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केशरी, महापुंडरीक और पुण्डरीक ये उनके नाम हैं। इन छह सरोवरों के कमलों पर श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये देवियाँ रहती हैं, वे ही तीर्थंकर की माता की सेवा करने आती हैं।