शरीर में नि:श्वास के साथ विजातीय तत्वों को विसर्जित करने का सरलतम उपाय है हास्य योग अर्थात् मुस्कुराना, खुलकर हँसना।
मुस्कान में छिपा है जीवन की समस्याओं का समाधान:— तनाव, चिंता, भय, क्रोध, निराशा, चिड़चिड़ापन, हड़बड़ी, अधीरता आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों से हमारी अंत:स्रावी ग्रंथियाँ खराब होती हैं जो शरीर में विभिन्न रोगों को निमंत्रण देने में अहं भूमिका निभाती हैं। जिस प्रकार अंधेरा और उजाला साथ—साथ नहीं रह सकते , ठीक उसी प्रकार मुस्कान के साथ रोग के उपरोक्त कारणों को स्वत: दूर होना पड़ता है । जिस घर में अतिथि का आदर सत्कार नहीं होता, उस घर में समझदार मेहमान अधिक देर तक नहीं रहना चाहते। अत: यदि हमारा चेहरा सदैव मुस्कुराता हुआ प्रसन्नचित्त रहे तो व्यक्ति अनेक रोगों से सहज ही बच सकता है। उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है, सोच सकारात्मक हो जाती है। दूसरी बात अकारण मुस्कुराने से तनाव, भय, चिंता, अशांति, स्वत: दूर भाग जाते हैं। प्रेम , मैत्री, आनंद, प्रसन्नता बढ़ने लगती है। प्रतिकूलता में अपने चेहरे को मुस्कुराते हुए रखना चाहिए एवं रोग की अवस्था में दवा की भाँति इसका उपयोग करना चाहिए। मात्र १० से १५ मिनिट मुस्कुराने से रक्तचाप चाहे बढ़ा हो या कम हो, सामान्य हो जाता है। मधुमेह के रोगी को दवा की आवश्यकता नहीं रहती। मुस्कान न केवल एक जीवन्त प्रक्रिया है, उससे भी कहीं अधिक एक सामाजिक, मनोवैज्ञानिक घटना भी है, जिससे दो व्यक्तियों के बीच शुभ संवाद आरंभ होने में सुविधा मिलती है। जब दो परिचित मिलते हैं तो दूर से ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। अतिथियों का मुस्कुराते हुए ही स्वागत किया जाता है। अर्थात् मुस्कान हमारे जीवन में आनंद, सुख, प्रसन्नता की सूचक होती है। मुस्कान की उपमा खिले हुए फूल से की जाती है। जिस प्रकार खिला हुआ फूल अच्छा लगता है, ठीक उसी प्रकार मुस्कान से व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है। जिसके चेहरे की मुस्कुराहट चली जाती है, उसके जीवन की प्रसन्नता चली जाती है। जिसके जितनी ज्यादा मुस्कान रहती है, उतना अधिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। मुस्कुराना प्रकृति की मानव को अनुपम देन है जो उसको स्वस्थ सुखी प्रसन्नचित्त रखने का उसके स्वयं के हाथ में सहज, सरल, सस्ता, प्रभावशाली उपाय है। जिसमें किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव की संभावना नहीं होती। जितना अधिक व्यक्ति आंतरिक मुस्कुराहट से ओतप्रोत रहता है, उतनी ही उसकी सहनशीलता बढ़ती जाती है। प्रतिकूलता और वियोग में समतामय जीवन जी सकता है। उसकी परदोष दृष्टि समाप्त होने लगती है। सकारात्मक होने लगता है जो मानव जीवन की सफलता एवं उद्देश्य प्राप्ति का मूलाधार होती है। सकारात्मक भाव पैदा होते हैं। जिससे शरीर के लिए उपयोगी रसायन पैदा होने लगते हैं। कार्य क्षमता बढ़ जाती है। अशांति की आग में आकुल व्याकुल व्यक्ति के लिए हास्य एक वरदान होता है। मुस्कुराहट सभी आकर्षक लगती है। जब वह होठों के साथ—साथ आँखों से भी नजर आये। मुस्कुराहट से अच्छा दूसरा तोहफा है और दवा प्राय: हमारे पास नहीं होती।
हँसना मानवीय स्वभाव है:— मानव ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसमें हँसने की क्षमता होती है। यह उसका स्वभाव भी है तथा उसके खुशी की अभिव्यक्ति का माध्यम भी। किसी बात पर मुस्कुराना अथवा हँसना किसी को देखकर हँसना, कुछ व्यंग्य सुनकर हँसना, कुछ पढ़कर हँसना, किसी को हँसते हुए देखकर हँसना, किसी से मुस्कुराते हुए मिलना, खुशी के प्रसंगों पर मुस्कुराना मानव व्यवहार की सहज क्रियाएँ हैं।
स्वास्थ्यवद्र्धक औषधि: हास्य:— जब मुस्कान हँसी में बदल जाती है तो स्वास्थ्यवद्र्धक औषधि का कार्य करने लगती है। हँसना स्वस्थ शरीर की पहचान है जो मानसिक प्रसन्नता के लिए आवश्यक है। नियमित हँसने से शरीर के सभी अवयव ताकतवर और पुष्ट होते हैं। हास्य तनाव का विरेचन है। सच्चा हास्य तोप के गोले की तरह छूटता है और मायूसी की चट्टान को बिखेर देता है। हास्य से रोम रोम पुलकित होते हैं, दु:खों का विस्मरण होता है, खून में नई चेतना आती है। शरीर में कुछ भाग हास्य ग्रंथियों के प्रति विशेष संवेदनशील होते हैं। हँसी मानसिक रोगों के उपचार का प्रभावशाली माध्यम होता है। खुलकर हँसने से रक्त की गति बढ़ जाती है एवं रक्त परिभ्रमण में आने वाले अवरोधक तत्व दूर होने लगते हैं। श्वसन क्रिया सुधरती है। ऑक्सीजन का संचार अधिक मात्रा में होने लगता है और दूषित वायु का पूर्ण निष्कासन होता है। शरीर के अधिकांश चेतना केन्द्र जागृत होने लगते हैं। अधिक हँसने वाले बच्चे फुर्तीले एवं अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होते हैं। १० मिनट हँसने मात्र से इतनी ऊर्जा मिलती है जो साधारणतया लगभग एक किलोमीटर प्रात: स्वच्छ वातावरण में भ्रमण करने से प्राप्त होती है। अमेरिका के प्रख्यात कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. विलियम प्रर्ड के अनुसार एक मिनिट का हँसना लगभग ४० मिनिट के बराबर होता है। मेक अस लॉफ में उन्होंने लिखा हँसने से दर्द से छुटकारा मिलता है। रक्त चाप सुधरता है। रक्त नलिकाएँ साफ होती हैं। रक्त संचार सुधरता है। हास्य से जो हारमोन्स बनते हैं, वे गठिया, एलर्जी एवं वात रोगों से मुक्ति दिलाते हैं दर्द दूर करते हैं। हँसने से चेहरे की माँसपेशियाँ सक्रिय होती हैं। उसमें झुर्रियाँ नहीं पड़ती। अनिद्रा, तनाव,भय,निराशा आदि दूर होते हैं। श्वसन आदि रोगों में विशेष लाभ होता है। हँसी से शरीर में वेग के साथ ऑक्सीजन का अधिक संचार होने से माँसपेशियाँ सशक्त होती हैं। जमे हुए विजातीय, अनुपयोगी, अनावश्यक तत्व अपना सथान छोड़ने लगते हैं, जिससे विशेष रूप से फैफड़े और हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है। अवरोध समाप्त होने से रक्त का प्रवाह संतुलित होने लगता है। शरीर स्वस्थ एवं बलिष्ठ होने लगता है। हँसी से शरीर में ताजगी आती है। अच्छी स्वाभाविक निद्रा आती है। बुखार दूर हो जाता है। दर्द और पीड़ा में राहत मिलती है। वास्तव में हँसी सभी प्रकार के रोगों में प्राय: लाभकारी होती है।हृदय रोगियों के हृदय की शल्य चिकित्सा का हास्य चिकित्सा एक सरलतम एवं प्रभावशाली उपचार है। दु:खी, चिन्तित, तनावग्रस्त , भयभीत, निराश क्रोधी आदि हँस नहीं सकते। यदि उन्हें किसी कारण से हँसी आती है तो उस समय तनाव, चिंता, भय, दु:ख, क्रोध आदि उस समय उनमें रह नहीं सकते, क्योंकि दोनों एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के होते हैं। अत: यदि हम काल्पनिक हँसी भी हँसेंगे तो तनाव, चिंता, भय, निराशा आदि स्वत: दूर हो जाते हैं। ये ही कारण हैं होते हैं जो व्यक्ति को अस्वस्थ, असंतुलित, रोगी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हँसने से शरीर के आंतरिक भाग की सहज मालिश हो जाती है। अंत:स्रावी ग्रंथियाँ और ऊर्जा चक्र सजग और क्रियाशील होने लगते हैं, जिससे रोग प्रतिकारात्मक क्षमता बढ़ती है। मन में सकारात्मक चिन्तन, मनन होने लगता है। शुभ विचारों का प्रादुर्भाव होता है। नकारात्मक भावनाएँ समाप्त होने लगती हैं। आज के तनावयुक्त वातावरण से मुक्त होने के लिए हास्य योग सरलतम, स्वयं के पास , सभी समय उपलब्ध सहज, सस्ता साधन है।
हास्य हेतु आलम्बन सहायक:— हँसने के लिये व्यक्ति बाह्य आलम्बनों पर निर्भर रहता है, जो हमारे पास सदैव उपस्थित नहीं होते । चुटकुलों के सहारे हम ३६५ दिन नहीं हँस सकते, क्योंकि नित्य नवीन ज्ञानवद्र्धक प्रभावशाली चुटकुले भी पढ़ने को नहीं मिलते और न ऐसे व्यक्तियों का नियमित संपर्वक होता है, जो दूसरों को हँसाने में दक्ष होते हैं।
हास्य संगठनों की उपयोगिता:— आज सारे विश्व में हास्य योग संगठन बनते जा रहे हैं। जो प्रात: काल खुले मैदानों अथवा बगीचों में नियमित एकत्रित होकर सामूहिक रूप से कृत्रिम ढंग से हँसते हें, हंसाते हैं। हम प्राय: अनुभव करते हैं कि साधारण परिस्थितियों में कभी कभी सामने वाले को हँसते हुए देख अकारण ही हँसी स्वत: आने लगती है। इसका छुआछूत के रोग की भाँति आपस में फैलाव अथवा प्रसार होने लगता है। जिससे समूह में हँसी का सहज माहौल हो जाता है। आजकल समूह में भी हँसने की भी विभिन्न विधियाँ मानव ने विकसित कर ली हैं।
हास्य में बाधक सामाजिक मर्यादाएँ :— आज के सभ्य समाज में अकारण हँसने वालों को मूर्ख अथवा पागल समझा जाता है। सामाजिक मर्यादाओं के प्रतिकूल होने से बिना बात हँसने से लज्जा आती है। अत: घर में बच्चों के अलावा अन्य परिजन विशेषकर महिलाओं एवं वृद्धों का, धर्म संघ में संतो का, कार्यालय में पदाधिकारियों एवं नेताओं का समूह में ऐसी हँसी हँसना प्राय: असंभव है।
बिना आवाज हँसी का महत्व:— चाहे अकेले में हों, या समूह में, व्यक्ति को हँसना तो स्वयं ही होता है। आलम्बन भले ही कुछ बंद कर मन ही मन जितनी लंबी देर एक ही श्वास में हँस सके, बिना आवाज निकाले हँसना चाहिए। जिससे ऐसी हँसी से प्राणायाम का भी लाभ भी स्वत: मिल जाता है। इस प्रकार बार बार पुनरावर्तन कर हँसने से हास्य योग का लाभ मिल जाता है। कोई भी प्रवृत्ति का सर्वमान्य स्पष्ट मापदण्ड नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यक्ति को स्वविवेक और स्वयं की क्षमताओं तथा हँसने से होने वाली प्रतिक्रियाओं का सजगता पूर्वक ध्यान रख अपने लिए उपयुक्त और आवश्यक विधियों का चयन करना चाहिए, न कि देखा देखी , सुनी सुनाई पद्धति के आधार पर । प्रदूषण रहित स्वच्छ एवं खुले प्राणवायु वाले वातावरण में प्रात: काल उदित सूर्य के सामने हँसना अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रद होता है, क्योंकि हास्य क्रिया के साथ—साथ सौर ऊर्जा एवं आक्सीजन अधिक मात्रा में सहज प्राप्त हो जाते हैं।
हास्य योग हेतु आवश्यक सावधानियाँ:— कभी—कभी किसी को देखकर, उसकी असफलता पर, उसकी बात सुनकर अथवा व्यंग्यात्मक भाषा में हँसते हुए उनका उपहास या मजाक करना व्रूर हास्य होता है। जिससे बैर भाव और द्वेष बढ़ने की संभावना होने से कषाय का कारण बनता है। अत: ऐसी हँसी का निषेध करना चाहिए। अत: हमको कब, क्यों, कहाँ कितना, कैसे हँसने का विवेक आवश्यक होता है। अन्यथा तनाव चिन्ता दूर करने वाली हँसी स्वयं उसको पैदा करने का कारण बन जाती है।