जैसे अध्यात्म (शास्त्र) में मूच्र्छा को ही परिग्रह कहा गया है, वैसे ही उसमें प्रमाद को हिंसा कहा गया है। एदे पंचपओगा किरियाओ होंति हिंसाओ।
द्वेष, हिंसक—उपकरण—ग्रहण,बुरे भाव से शरीर—क्रिया, दूसरों को परिताप देने वाली क्रिया और प्राण—हनन, ये पाँच क्रियात्मक प्रयोग हिंसा हुआ करते हैं।