जिनेश्वर ईश हे मेरे, आराध्य जिनेश मुझको चाहिए।
समय की माँंग ज्ञानमति, ज्ञानमति जिनधर्म को चाहिए।।
संतों को सुना, पुराणों में पढ़ा। राजा श्रीपाल ने, चंपापुरी का द्वार खोला।।
जगत है साक्षी, सच है बात भी। आर्यिका ज्ञानमति ने,
कुमारियों का दीक्षा द्वार खोला।। समय…………
इतिहास हमको बताता, लक्ष्मी रानी से मिलाता।
देश प्रेम के खातिर, महारानी हँसते-हँसते युद्ध लड़ी।।
हो वैराग्य की मूरत, हो ज्ञान की सूरत।
आत्म प्रेम के खातिर, यौवन में दीक्षा ले सबके आगे खड़ी।।समय…………
माँगता हो जग सारा, दे दो ज्ञान भंडारा।
बनकर शारदे, तुम ज्ञान के सुभूषण लुटाने आयी।।
लगती हो जीवंत भारती, काव्य से उतारी आरती।
बन ज्ञान रथ की सारथी, धरा पर ज्ञान का शंखनाद कराने आयी।। समय…….
जग की है कामना, मेरी हार्दिक भावना। बनकर दीर्घ जीवी,
जिन धर्म जन-जन को बता दो। रहेगा जग पे उपकार,
होगी सदा जय-जयकार। एक नहीं, दो नहीं, हे माँ! अनेकों ज्ञानमति बना दो।। समय………..