इक माँ होती जनम दायिनी, आप हो माता जन्म सुधारिणी।
इक माँ होती काय पोषिणी, आप हो माता भव सुधारिणी।।
इक माँ होती स्वार्थ साधिनी, आप हो माँ, स्व पर प्रज्ञायिनी।
इक माँ होती भवधार वाहिनी, हे माँ आप हो भवदधि तारिणी।।
ज्ञानोपयोग को साकार किया है, अबोधजनों को ज्ञान दिया है।
भावों में प्रज्ञा बसी आपके, नारी भाव, भव तार लिया है।।
पचास वर्ष दीक्षा को धारे, सुप्त तीर्थ को आप सुधारे।।
भव्य विधान रचे अनेकों, आत्मज्ञान को खूब प्रसारे।।
प्रथम गणिनी, प्रथम ज्ञानज्योति, प्रथम ज्ञानमती हे माता।
बसंत, चरण रज पाकर आपकी, पा ही गया है अनुपम साता।।