तर्ज-मंदिर में बाज रहे……… है प्रमुदित धरती और अम्बर, त्याग का शुभ दिन है प्यारा। दीक्षा की रजत जयंती है, करो माता का जयकारा।।टेक.।। छोटेलाल पिता, मोहिनि माता से तुमने जन्म लिया। ज्येष्ठ कृष्ण मावस की तिथि को ज्योतिर्मय तब बना दिया।। गुरुवर के रूप में जब तुमने, ज्ञानमति सम गुरु स्वीकारा। दीक्षा की रजत जयंती है, करो माता का जयकारा।।१।। गौरव द्विगुणित हुआ महक गई, चारित चक्री की बगिया। गजपुर में माँ ज्ञानमती ने, नारी पद सर्वोच्च दिया।। चन्दनामति माताजी बन, ज्ञानसुरभी को विस्तारा। दीक्षा की रजत जयंती है, करो माता का जयकारा।।२।। लिखे शताधिक ग्रंथ आपने, आगम का प्रतिरूप दिखे। साधु जगत है गौरवशाली, ऐसी अनुपम निधि लख के।। रतनत्रय अडिग साधनारत, मोक्षमारग को साकारा। दीक्षा की रजत जयंती है, करो माता का जयकारा।।३।। शब्द प्रसूनों की अंजलि से, कितना भी गुणगान करूँ। अगणित गुण की खान मात के, गुण को फिर भी गा न सकूँ।। युगों युग तक जीवन्त रहो ‘इन्दु’ का भाव यही प्यारा। दीक्षा की रजत जयंती है, करो माता का जयकारा।।४।।