ध्यान की उपयोगिता-स्वास्थ्य का पहला लक्षण मेरुदण्ड लचीला और स्वस्थ रहे। मेरुदण्ड को लचीला रखने के लिए मेरुदण्ड की क्रियाएँ और सीधा बैठना आवश्यक है। मेरुदण्ड के मात्र सीधा रहने से प्राण-धारा का सन्तुलन होने लगता है, जिससे व्यक्ति शक्तिशाली और प्राणवान बनता है। दीर्घश्वास से एकाग्रता आती है और गुस्सा शांत होता है। योगनिन्द्रा से तनाव में कमी और शांति मिलती है। विधायक सोच और मंगल भावना से मैत्री का विकास होता है। योग और मुद्राओं से स्वभाव बदलता है।ह्रीं क्या है? ह्रीं एक बीजाक्षर वर्ण है। इस एक ह्रीं के अन्दर चौबीस तीर्थंकर समाहित हैं जो कि भिन्न-भिन्न वर्ण के हैं-
वरनाद दुतीया चंद्र सदृश, बिंदू नीली है कला लाल।
ईकार हरित ह्र पीत इन्हीं में, उन-उन वर्णी जिन कृपालु।।
चंदाप्रभु पुष्पदंत शशि में, विन्दू में नेमी मुनिसुव्रत।
श्री पद्मप्रभु जिन वासुपूज्य हैं, कमलवर्ण सम कलामध्य।।१।।
ई मात्रा मध्य सुपार्श्व पार्श्व, ह्र बीज में सोलह तीर्थंकर।
ऋषभाजित संभव अभिनंदन, सुमती शीतल श्रेयोजिनवर।।
श्री विमल अनंत धर्म शांती, कुंथू अर मल्लि नमी सन्मति।
ये ह्रीं मध्य चौबिस जिनवर, इनको वंदूँ ध्याऊँ नितप्रति।।२।।
ध्यान प्रारंभ करें, सर्वप्रथम आप शुद्धमन से शुद्धवस्त्र धारण कर किसी एकांत स्थान अथवा पार्क जैसे खुले स्थान पर पद्मासन, अर्धपद्मासन अथवा सुखासन से बैठ जाएं। शरीर पर पहने हुए वस्त्रों के अतिरिक्त समस्त परिग्रह को त्यागकर स्वाधीनता का अनुभव करते हुए तन-मन में शिथिलता का सुझाव दें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
तर्ज-आवाज देकर तुम्हें….
चलो मन को अन्तर की यात्रा कराएं।
भटकते विचारों को मन से हटाएँ।।
मेरी आतम सत्य शिव सुन्दरम् है।
कुसंगति से उसमें हुआ मति भरम है।।
पुरुषार्थ कर शुद्ध आतम को ध्याएँ।
भटकते विचारों को मन से हटाएं।।१।। चलो……
न हम हैं किसी के न कोई हमारा।
सभी से जुदा आतमा है निराला।।
उसे ‘‘चन्दनामति’’ स्वयं निज में पाएँ।
भटकते विचारों को मन से हटाएं।।२।। चलो…….
इसके पश्चात् बाएं हाथ की हथेली पर दाहिने हाथ की हथेली रखकर आँखें कोमलता से बंद करके भगवान के समान शांत मुद्रा में बैठ जाएं और ऊँकार का नाद करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए आत्म शांति का अनुभव करें-