इस ह्रीं बीजाक्षर में यथास्थान तीर्थंकर विराजमान होने का नियम है। जैसा कि ऋषिमण्डल स्तोत्र में लिखा है-
अर्हदाख्य: सवर्णान्त:, सरेफो बिंदुमण्डित:।
तुर्यस्वरसमायुक्तो, बहुध्यानादिमालित:।।९।।
एकवर्णं द्विवर्णं च, त्रिवर्णं तुर्यवर्णकं।
पंचवर्णं महावर्णं, सपरं च परापरं।।१०।।
अस्मिन् बीजे स्थिता: सर्वे, वृषभाद्या जिनोत्तमा:।
वर्णैर्निजैर्निजैर्युक्ता, ध्यातव्यास्तोत्र संगता:।।११।।
नादश्चन्द्रसमाकारो, बिंदुर्नीलसमप्रभ:।
कलारुणसमासांत:, स्वर्णाभ: सर्वतोमुख:।।१२।।
शिरः संलीन ईकारो, विनीला वर्णतः स्मृत:।
वर्णानुसारिसंलीनं, तीर्थकृन्मण्डलं नम:।।१३।।
चन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ, नादस्थितिसमाश्रितौ।
बिन्दुमध्यगतौ नेमि-सुव्रतौ जिनसत्तमौ।।१४।।
पद्मप्रभवासुपूज्यौ, कलापदमधिश्रितौ।
शिरईस्थितिसंलीनौ, सुपार्श्वपार्श्वौ जिनोत्तमौ।।१५।।
शेषास्तीर्थंकराः सर्वे, हरस्थाने नियोजिता:।
मायाबीजाक्षरं प्राप्ता-श्चतुर्विंशतिरर्हतां।।१६।।
गतरागद्वेषमोहा:, सर्वपापविवर्जिता:।
सर्वदा सर्वलोकेषु, ते भवन्तु जिनोत्तमा:।।१७।।
-पद्यानुवाद-
जो सांत सरेफ बिन्दुमंडित, चौथे स्वर से युत होता है।
वह ‘ह्रीं’ बीज ध्यानादि योग्य, अर्हंत नाम का होता है।।१०।।
यह श्वेत वर्ण है श्याम वर्ण है, लाल वर्ण औ नील वर्ण।
औ पीतवर्ण भी है उत्तम, सर्वोत्तम माना महावर्ण।।
इस ह्रीं बीज में स्थित हैं, निज निज वर्णों से युक्त सभी।
वृषभादि जिनेश्वर इस स्तोत्र में, स्थित ध्यानयोग नित भी।।११।।
सित अर्ध चंद्रसम नाद बिन्दु, नीली मस्तक है लाल वर्ण।
सब तरफ हकार स्वर्णसम है, ईकार कहा है हरित वर्ण।।
इस तरह ‘ह्री ँ’ है पंचवर्ण, उन उन वर्णोंे के तीर्थंकर।
उस उस थल में स्थापित कर, उन सबको नमन करो सुखकर।।१२।।
श्री चंद्रप्रभ औ पुष्पदंत, शशिसदृश नाद में स्थित हैं।
श्री नेमिनाथ औ मुनिसुव्रत, बिंदू के मध्य विराजित हैं।।
श्री पद्मप्रभू औ वासुपूज्य, मस्तक के मध्य अधिष्ठित हैं।
श्री जिनसुपार्श्व औ पार्श्वनाथ, ईकार वर्ण के आश्रित हैं।।१३।।
सोलह तीर्थंकर शेष सभी, ह औ रकार में राजित हैं।
मायाबीजाक्षर ह्रीं मध्य, चौबीसों जिनवर आश्रित हैं।।
ये रागद्वेष औ मोह रहित, सब पाप रहित चौबिस जिनवर।
सम्पूर्ण लोक में भव्यों के, हेतू होवें वे नित सुखकर।।१४।।
विशेषार्थ-जो ह्री ँ में अर्ध चंद्राकार है वह श्वेत वर्ण का है उसमें श्वेतवर्ण वाले चंद्रप्रभ एवं पुष्पदंतनाथ ऐसे दो तीर्थंकर विराजमान हैं।।
िंबदु नीली है उसमें नील वर्ण के दो तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ विराजमान हैं। कला-लाइन लाल है इसमें लालवर्ण के दो तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ एवं श्री वासुपूज्य भगवान विराजमान हैं। ‘ईकार’ वर्ण हरित है इसमें हरे वर्ण के श्री सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ विराजमान हैं। पुन: ह्र पीत वर्ण का है इसमें स्वर्णिम वर्ण वाले सोलह तीर्थंकर विराजमान हैं। इनके नाम
१. श्री ऋषभदेव, २. अजितनाथ, ३. संभवनाथ, ४. अभिनंदननाथ, ५.सुमतिनाथ, ६. शीतलनाथ, ७. श्रेयांसनाथ, ८. विमलनाथ, ९. अनंतनाथ १०.धर्मनाथ, ११. शांतिनाथ, १२. कुंथुनाथ, १३. अरनाथ, १४.मल्लिनाथ, १५. नमिनाथ एवं १६. महावीर स्वामी ये १६ तीर्थंकर भगवान स्वर्णिम-पीत वर्ण के माने गये हैं, इन्हें क्रमश: इस ‘ह्र’ में विराजमान करना हैं।
अभी दिल्ली से हस्तिनापुर के मार्ग में कई स्थानों पर ‘ह्री ँ’ की प्रतिमा विराजमान थीं, जिनके दर्शन किये। इनमें कहीं भी लाइन में अनेक तीर्थंकर आदि विराजमान कर दिये हैं। इन श्लोकों के आधार से नहीं विराजमान हैं।