(ऋषिमण्डल स्तोत्र से उद्धृत))
अर्हदाख्य: सवर्णान्त:, सरेफो बिंदुमण्डित:।
तुर्यस्वरसमायुक्तो, बहुध्यानादिमालित:।।१८।।
एकवर्णं द्विवर्णं च, त्रिवर्णं तुर्यवर्णकं।
पंचवर्णं महावर्णं, सपरं च परापरं।।१९।।
अस्मिन् बीजे स्थिता: सर्वे, वृषभाद्या जिनोत्तमा:।
वर्णैर्निजैर्निजैर्युक्ता, ध्यातव्यास्तत्र संगता:।।२०।।
नादश्चन्द्रसमाकारो, बिंदुनर्रीलसमप्रभ:।
कलारुणसमासांत:, स्वर्णाभ: सर्वतोमुख:।।२१।।
शिर:संलीन ईकारो विनीलो वर्णत: स्मृत:।
वर्णानुसारिसंलीनं, तीर्थकृन्मण्डलं नम:।।२२।।
चन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ, नादस्थितिसमाश्रितौ।
बिन्दुमध्यगतौ नेमि-सुव्रतौ जिनसत्तमौ।।२३।।
पद्मप्रभवासुपूज्यौ, कलापदमधिश्रितौ।
शिर ईस्थितसंलीनौ, सुपार्श्वपाश्वौ जिनोत्तमौ।।२४।।
शेषास्तीर्थंकरा: सर्वे, हर स्थाने नियोजिता:।
मायाबीजाक्षरं प्राप्ताश्चतुर्विंशतिरर्हतम्।।२५।।
(पद्यानुवाद))
जो सांत सरेफ बिन्दुमंडित, चौथे स्वर से युत होता है।
वह ‘ह्रीं’ बीज ध्यानादि योग्य, अर्हंत नाम का होता है।।१८।।
यह श्वेत वर्ण है श्याम वर्ण है, लाल वर्ण औ नील वर्ण।
औ पीतवर्ण भी है उत्तम, सर्वोत्तम माना महावर्ण।।१९।।
इस ह्रीं बीज में स्थित हैं, निज निज वर्णों से युक्त सभी।
वृषभादि जिनेश्वर इस स्तोत्र में, स्थित ध्यानयोग नित भी।।२०।।
सित अर्ध चंद्रसम नाद बिन्दु, नीली मस्तक है लाल वर्ण।
सब तरफ हकार स्वर्णसम है, ईकार कहा है हरित वर्ण।।२१।।
इस तरह ‘ह्री ँ’ है पंचवर्ण, उन उन वर्णोंे के तीर्थंकर।
उस उस थल में स्थापित कर, उन सबको नमन करो सुखकर।।२२।।
श्री चंद्रप्रभ औ पुष्पदंत, शशिसदृश नाद में स्थित हैं।
श्री नेमिनाथ औ मुनिसुव्रत, बिंदू के मध्य विराजित हैं।।२३।।
श्री पद्मप्रभू औ वासुपूज्य, मस्तक के मध्य अधिष्ठित हैं।
श्री जिनसुपार्श्व औ पार्श्वनाथ, ईकार वर्ण के आश्रित हैं।।२४।।
सोलह तीर्थंकर शेष सभी, ह औ रकार में राजित हैं।
मायाबीजाक्षर ह्रीं मध्य, चौबीसों जिनवर आश्रित हैं।।२५।।
ह्री ँ बीजाक्षर में ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकर स्थित हैं, वे अपने-अपने वर्णों से युक्त हैं उनका ध्यान करना चाहिए। इस ह्री ँ में जो नाद ( ) है वह चन्द्र के समान आकार व वर्ण वाला है, जो बिन्दु (०) है वह नीलमणि प्रभा वाली है। जो कला (-) है वह लाल वर्ण की है जो ‘ह्र’ वर्ण है वह स्वर्ण के समान आभा वाला है। सिर के ऊपर जो ( ी ) ईकार है वह हरित वर्ण का है। इस तरह उन-उन वर्ण वाले तीर्थंकर देव उन-उन वर्ण के स्थानों में स्थित हैं, उन सबको मेरा नमस्कार होवे।चन्द्रप्रभ और पुष्पदंत श्वेत वर्ण वाले होने से ये दोनों नाद ( ) में स्थित हैं। नेमिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ भगवान नीलवर्ण वाले हैं अत: वे बिन्दु (०) में विराजमान हैं। पद्मप्रभु तथा वासुपूज्य भगवान लाल वर्ण वाले होने से वे कला(-) में विराजमान हैं तथा सुपार्श्व और पार्श्वनाथ भगवान हरित वर्ण के हैं अत: वे ईकार ( ी ) में स्थित हैं तथा शेष सोलह तीर्थंकर स्वर्ण के समान छवि वाले होने से ह् और र् (ह्र) में स्थापित किये गये हैं। इस प्रकार ये चौबीसों ही तीर्थंकर इस माया बीजाक्षर (ह्री ँ) को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् चौबीसों ही तीर्थंकर इस बीजाक्षर रूप को प्राप्त हो गए हैं, जिन्हें अनन्त बार हमारा प्रणाम है।इस प्रकार दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में विराजित भगवान ऋषभदेव एवं उनके पुत्र भगवान भरत एवं ह्री ँ में विराजित रत्नमयी चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा सभी भव्य जीवों के लिए मंगलकारी होवें।