‘अर्हं’ बीजाक्षर का जाप्य, ध्यान व मनन संपूर्ण कार्यों की सिद्धि करने वाला है।
आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यत् स्थितम् ।
अग्निज्वालासमं नादं बिन्दुरेखासमन्वितम्।।१।।
अग्निज्वालासमाक्रान्तं मनोमल विशोधनम् ।
देदीप्यमानं हृत्पद्मे तत्पदं नौमि निर्मलं।।२।। (पद्यानुवाद)
शंभु छंद आदी अक्षर ‘अ’ अंताक्षर, ‘ह’ इन दो को ले लेने में। ‘आ’ से लेकर ‘स’ पर्यंते, सब अक्षर आ जाते इनमें।।१।।
अग्नी ज्वाला ‘र’ बीजाक्षर, ऊपर यह बिंदु सहित सुन्दर। ‘अर्हंं’ यह मंत्र बना सुंदर, यह मंत्र मनोमल शोधन कर।।२।।