Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
07. अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं
July 22, 2017
Books
jambudweep
अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं
अर्हमित्यक्षरब्रह्म
वाचकं परमेष्ठिन:। सिद्धचक्रस्य सद्बीजं, सर्वत: प्रणिदध्महे।।११।।
कर्माष्टकविनिर्मुत्तंक, मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम्।
सम्यक्त्वादिगुणोपेतं, सिद्धचक्रं नमाम्यहम्।।१२।।
आकृष्टिं सुरसंपदां विदधते, मुक्तिश्रियो वश्यतां।
उच्चाटं विपदां चतुर्गतिभुवां, विद्वैषमात्मैनसाम्।।
स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो, मोहस्य सम्मोहनम्।
पायात्पंचनमस्क्रियाक्षरमयी, साराधना देवता।।१३।।
(पद्यानुवाद)
शंभु छंद
‘‘अर्हं’’ यह अक्षर है, ब्रह्मरूप परमेष्ठी का वाचक।
सिद्धचक्र का सही बीज है, उसको नमन करूँ मैं नित।।११।।
अष्टकर्म से रहित मोक्ष-लक्ष्मी के मंदिर सिद्ध समूह।
सम्यक्त्वादि गुणों से युत श्री-सिद्धचक्र को सदा नमूं।।१२।।
सुरसंपति आकर्षण करता, मुक्तिश्री को वशीकरण।
चतुर्गति विपदा उच्चाटन, आत्म-पाप में द्वेष करण।।
दुर्गति जाने वाले का, स्तंभन मोह का सम्मोहन।
पंचनमस्कृति अक्षरमय, आराधन देव! करो रक्षण।।१३।।
Tags:
Jinagam navneet
Previous post
07. सीता-सीतोदा नदियों के मध्य सरोवरों में कमलों में जिनमंदिर
Next post
हिमवान आदि छह पर्वत एवं विजयार्ध पर्वत के कूटों का वर्णन
Related Articles
23. श्रीरामचन्द्र जी ने लंका में स्वर्णमयी हजार खंभों वाले
July 11, 2017
jambudweep
45. भगवान महावीर की दिव्यध्वनि श्रावण कृष्णा एकम् को खिरी
August 27, 2015
jambudweep
78. षट्खंडागम आदि ग्रन्थ पूर्ण प्रमाण हैं
July 18, 2017
jambudweep