जितमदहर्षद्वेषा, जितमोहपरीषहा जितकषाया:।
जितजन्ममरणरोगा, जितमात्सर्या जयन्तु जिना:।।१०।।
मद अरु हर्ष द्वेष के विजयी, मोह परीषह के विजयी। महा कषाय भटों के विजयी, भव कारण के अतःजयी।। जन्म-मरण रोगों को जीता, मात्सर्यादिक दोषजयी। सबको जीत कहाए तुम ‘जिन’, अतः रहो जयशील सही।।१०”” मुनिचर्या-ईर्यापथ शुद्धि से