तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में श्री विद्यानंदि महोदय तत्त्वार्थसूत्र को आप्तमूलक सिद्ध कर रहे हैं-
‘‘संप्रदायाव्यवच्छेदाविरोधादधुना नृणाम्।
सद्गोत्राद्युपदेशोऽत्र यद्वत्तद्वद्विचारत:।।६।।
प्रमाणमागम: सूत्रमाप्तमूलत्वसिद्धित:।।
’’संप्रदाय-परम्परा के व्यवच्छेद का अविरोध होने से यह सूत्र आगम प्रमाण है क्योंकि यह आप्तमूलक सिद्ध है। जैसे-आजकल मनुष्यों के सद्गोत्र (काश्यप आादि) आदि का उपदेश प्रवाहरूप से पाया जाता है। उसी प्रकार से विचार करने से यह सूत्ररूप आगम पूर्णतया प्रमाणभूत ही है। (तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक मूल, पृ. ८)