जेसिं तरूण मूले उप्पण्णं जाण केवलं णाणं।
उसहप्पहुदिजिणाणं ते चिय असोयरुक्ख त्ति।।११५।।
ऋषभादि तीर्थंकरों को जिन वृक्षों के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है वे ही अशोक वृक्ष हैं।।११५।।
२४ तीर्थंकरों के अशोक वृक्ष के नाम-
णग्गोेहसत्तपण्णं सालं सरलं पियंगु तं चेव।
सिरिसं णागतरू वि य अक्खा धूली पलास तेंदूवं।।११६।।
पाडलजंबू पिप्पलदहिवण्णो णंदितिलयचूदा य।
वंकल्लिचंपबउलं मेसयसिंगं धवं सालं।।११७।।
सोहंति असोयतरू पल्लवकुसुमाणदाहि साहाहिं।
लंबंतमालदामा घंटाजालादिरमणिज्जा।।११८।।
न्यग्रोध, सप्तपर्ण, शाल, सरल, प्रियंगु, फिर वही (प्रियंगु), शिरीष, नागवृक्ष, अक्ष(बहेड़ा), धूली (मालिवृक्ष), पलाश, तेंदू, पाटल, पीपल, दधिपर्ण, नन्दी, तिलक, आम्र, वंâकेलि (अशोक), चम्पक, बकुल, मेषशृङ्ग, धव और शाल, ये अशोकवृक्ष लटकती हुई मालाओं से युक्त और घंटासमूहादिक से रमणीय होते हुए पल्लव एवं पुष्पों से झुकी हुई शाखाओं से शोभायमान होते हैं।।९१६-९१८।। (तिलोयपण्णत्ति,पृ॰ २६४)