यह लघु सामायिक दण्डक और लघु थोस्सामि पाठ प्रतिष्ठातिलक ग्रंथ में लघु भक्तियों के पाठ में उपलब्ध हुआ है अत: लघु भक्ति के पाठ में लघु सामायिक दण्डक और लघु थोस्सामिस्तव कर सकते हैं ऐसा जाना जाता है। जैसे कि स्वाध्याय के समय लघु श्रुतभक्ति आदि में लघु कृतिकर्म कर सकते हैं।
अथ ………क्रियायां ……………………………..भक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम् ।
(यह प्रतिज्ञा करके पंचांग नमस्कार करें, पुन: तीन आवर्त एक शिरोनति करके सामायिक दंडक पढ़ें।)
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।।
चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि-अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। जाव अरहंताणं भयवंताणं पज्जुवासं करेमि, ताव कालं पाव कम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि।
(तीन आवर्त एक शिरोनति करके २७ उच्छ्वास में नव बार णमोकार मंत्र पढ़ें पुन: तीन आवर्त एक शिरोनति करके थोस्सामिस्तव पढ़ें।)
लघु कायोत्सर्ग विधि- अथ…….क्रियायां…….भक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। सामायिक दण्डक णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। चत्तारि मंगलं—अरिहंत मंलगं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा—अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि—अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि।
श्री गौतम गणधर वाणी अमृतर्विषणी टीका / १९३
थोस्सामिस्तव— थोस्सामि हं जिणवरे तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवर लोयमहिए विहुयरयमले महप्पण्णे।। लोयस्सुज्जोययरे धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे। अरहंते कित्तिस्से चउवीसं चेव केवलिणा।। (तीन आवर्त एक शिरोनति करके पुन: जिस भक्ति के लिए कायोत्सर्ग किया हो, उस भक्ति को पढ़ें।) जब तक भगवत् अर्हद्देव की, करूँ उपासना हे जिनदेव! तब तक पापकर्म दुश्चारित, का मैं त्याग करूँ स्वयमेव।।१।।
(९ बार णमोकार मंत्र का जाप्य)
स्तवन करूँ जिनवर तीर्थंकर, केवलि अनंत जिनप्रभु का।
मनुज लोक से पूज्य कर्मरज, मल से रहित महात्मन् का।।
लोकोद्योतक धर्मतीर्थंकर, श्री जिन का मैं नमन करूँ।
जिन चौबीस अर्हंत तथा, केवलिगण का गुणगान करूँ।।१।।
-उपजातिछंद–
श्री पार्श्वनाथ: स्वपरात्मविज्ञ:, श्रेणीं श्रित: स्वात्मजशुक्लयोगै:।
घातीनि हत्वा जगदेकसूर्य:, कैवल्यमाप्नोत् तमहं स्तवीमि।।
स्वपरभेदवित् पारस स्वात्मज, ध्यानशुक्ल श्रेणी पर चढ़।
घात घातिया केवल पायो, त्रिभुवनसूर्य नमूँ शुचि कर।।
-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी