षट्षष्टिदिवसान् भूयो मौनेन विहरन विभुः।
आजगाम जगत्ख्यातं जिनो राजगृहं पुरम्।।६१।।
आरुरोह गिरिं तत्र विपुलं विपुलश्रियम्
प्रबोधार्थं स लोकानां भानुमानुदयं यथा।।६२।।
तदनन्तर छ्यासठ दिन तक मौन से विहार करते हुए श्री वर्धमान जिनेन्द्र जगत् प्रसिद्ध राजगृह नगर आये ।।६१।। व
हाँ जिस प्रकार सूर्य उदयाचल पर आरूढ़ होता है उसी प्रकार वे लोगों को प्रतिबुद्ध करने के लिए विपुल लक्ष्मी के धारक विपुलाचल पर आरूढ़ हुए ।।६२।। ( हरिवंशपुराण,सर्ग-२,पृ॰ १७)