पुण्यमित्थमुपात्तं यत् तदभ्युदयलक्षणम्।
दत्वा दातुः फलं दत्ते प्राग् नि:श्रेयसलक्षणम्।।२०१
दान का फल बताते हुए राजा श्रेयांस ने कहा कि इस तरह दान देने से जो पुण्य संचित होता हैे वह दाता के लिए पहले स्वर्गादिरूप फल देकर अन्त में मोक्षरूपी फल देता।।२०१।। ( हरिवंशपुराण,सर्ग-९,पृ॰ १८२)