पुण्यं जिनेन्द्रपरिपूजनसाध्यमाद्यं पुण्यं सुपात्रगतदानसमुत्थमन्यत्।
पुण्यं व्रतानुचरणदुपवासयोगात् पुण्र्यािथनामिति चतुष्टयमर्जनीयम्।।२१९।।
जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने से उत्पन्न होने वाला पहला पुण्य है, सुपात्र को दान देने से उत्पन्न हुआ दूसरा पुण्य है, व्रत पालन करने से उत्पन्न हुआ तीसरा पुण्य है और उपवास करने से उत्पन्न हुआ चौथा पुण्य है। इस प्रकार पुण्य की इच्छा करने वाले पुरुषों को ऊपर लिखे हुए चार प्रकार के पुण्यों का संचय करना चाहिए।।२१९।। (आदिपुराण भाग—२ पृ. ६०)