एवं व्रतं मया प्रोक्तं त्रयोदशधैर्युतम्।
निरतिचारकंपाल्यं तेऽतीचारास्तु सप्ततिः।।४६३।।
अर्थ –इस प्रकार मैंने श्रावकों के तेरह प्रकार के चारित्र का निरूपण किया है। ये तेरहों प्रकार के व्रत अतिचार रहित पालन करने चाहिये। इन सब व्रतोंं के अतिचारों की संख्या सत्तर है। प्रत्येक व्रत के पाँच-पांच अतिचार हैं इस प्रकार बारह व्रतों के साठ अतिचार हैं तथा पाँच सम्यग्दर्शन के और पांच सल्लेखना के इस प्रकार सत्तर अतिचार होते हैं।
सूत्रे तु सप्तमेऽप्युक्ताः प्रथग्नोक्तास्तदर्थतः।
अवशिष्टः समाचारः सोत्रैव कथितो ध्रुवम्।।४६४।।
अर्थ –तत्त्वार्थसूत्र के सातवें अध्याय में इन समस्त अतिचारों का निरूपण किया है। इसलिए यहाँ पर उनका वर्णन नहीं किया। सातवें अध्याय के कथन से जो बचे हुए समाचार हैं वे ही यहां इस ग्रन्थ में निरूपण किये हैं। यह ग्रन्थ भगवान् उमास्वामी का बनाया हुआ है तथा मोक्षशास्त्र या तत्त्वार्थसूत्र भी भगवान् उमास्वामी का बनाया हुआ है । भगवान् उमास्वामी ने अपने तत्त्वार्थसूत्र में इन सत्तर अतिचारों का निरूपण बहुत अच्छी तरह किया है। इसीलिये आचार्य ने इस श्लोक में अतिचारों का हवाला दे दिया है। जो विषय अपने ही किसी ग्रन्थ में कहा जा चुका है, उसी विषय को दूसरे ग्रन्थ में लिखना शोभा नहीं देता। इसीलिए आचार्य महाराज ने अतिचार नहीं कहे हैं। तत्त्वार्थसूत्र में पूजा प्रकरण या श्रावकों के षट्कर्मों का वर्णन नहीं है। इन षट्कर्मों को ही समाचार कहते हैं। व्रतों का वर्णन भी अत्यन्त संक्षिप्त है। विधि विधान किसी का नहीं है। इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र में श्रावकाचार सम्बन्धी जो कमी थी वह इस ग्रंथ में पूरी की है। यह बात इस श्लोक से स्पष्ट जान पड़ती है। (उमास्वामी श्रावकाचार पृ. १५१)