दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ के जन्म से पवित्र ‘‘भद्दिलपुर’’ नगरी झारखंड प्रान्त के हजारीबाग जिले में है, इसका दूसरा नाम भद्रिकापुरी भी है। इस विषय में जानकारी प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ है कि भोंदलगाँव और उसके आसपास में प्रचुर मात्रा में जैनधर्म से संबंधित पुरातत्व सामग्री बिखरी हुई पड़ी है। यहाँ के निकटवर्ती प्रदेश का सूक्ष्म निरीक्षण करने के पश्चात् यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भोंदलगाँव ही शीतलनाथ की जन्मभूमि है। वहाँ पर भगवान शीतलनाथ के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान ये चार कल्याणक हुए हैं तथा सम्मेदशिखर से उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया है। भगवान शीतलनाथ के जन्म का उल्लेख करते हुए जैन पुराणों में वर्णन है कि- शीतलनाथस्वामी भद्दिलपुर (भद्रिकापुरी) में पिता दृढ़रथ और माता सुनन्दा से माघ कृष्णा द्वादशी के दिन उत्पन्न हुए। ये भगवान इक्ष्वाकुवंशी थे, जब ये यौवन अवस्था को प्राप्त हुए तो इनका विवाह हो गया और पिता ने दीक्षा धारण से पूर्व इनका राज्याभिषेक कर दिया। राज्य करते-करते इन्हें एक बार कुछ निमित्त से वैराग्य हो गया, तब माघकृष्णा द्वादशी के दिन ही अपराण्ह समय मेंं इन्होंने मूल नक्षत्र के रहते हुए वन में दीक्षा धारण कर ली। यह सहेतुक वन भी वर्तमान भद्दिलपुर के समीप (३५ किमी.) ‘‘कुलुहा’’ पहाड़ पर माना जाता है। इसी वन में उनका केवलज्ञान भी हुआ था तब पौष कृष्णा अमावस्या के दिन देवों ने उनका समवसरण रचकर केवलज्ञान महोत्सव मनाया था। इस शताब्दी में सर विलियम हण्टर, डॉ. स्टेन आदि इतिहासकारों ने कुलुहा पर्वत तथा उसके आसपास निरीक्षण करके और शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि ‘कुलुहा’ पहाड़ जैन तीर्थ है तथा उसका निकटवर्ती भोंदलगाँव (भद्दिलग्राम) ही शीतलनाथ की जन्मभूमि है। इस जन्मकल्याणक भूमि का उद्धार और विकास निकट भविष्य में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से संभावित है, तब यात्रियों को भगवान शीतलनाथ की जन्मभूमि पवित्र तीर्थ पर जाकर दर्शन करने का सौभाग्य सुलभतया मिल सकेगा। आजकल कुछ लोग विदिशा (म.प्र.) के निकट भी भगवान शीतलनाथ की जन्मभूमि मानते हैं। इस विषय में पूज्य माताजी का कहना है कि समाज के प्रबुद्ध साधुवर्ग, विद्वद्वर्ग एवं श्रावकवर्ग को ऊहापोह करके निर्णय करना चाहिए।