वीरस्यैकस्य निर्वाणं षड्विंशतिसहितस्य तु।
पाश्र्वस्य सह नेमेः षट्त्रिंशता पञ्चभिः शतै:।।२८२।।
मल्लिःपञ्चशतैः सिद्धः शान्तिर्नवशतैःसह।
सैकैरष्टशतैर्धर्मो द्वादशः सैकषट्शतैः।।२८३।।
सहस्रैर्विमलःषड्भिरनन्तस्तैस्तु सप्तभिः।
सप्तमःपञ्चशत्यामा पद्माभोऽष्टशतैस्त्रिभिः।।२८४।।
वृषो दशसहस्रैस्तु मुनिभिर्मुक्तिमाश्रितः।
प्रत्येकं तु जिनाः शेषाः सहस्रेण समन्विताः।।२८५।।
महावीर भगवान् का एकाकी-अकेले का, पाश्र्वनाथ का छब्बीस मुनियों के साथ, नेमिनाथ का पाँच सौ छत्तीस मुनियों के साथ निर्वाण हुआ है। मल्लिनाथ पाँच सौ, शान्तिनाथ नौ सौ, धर्मनाथ आठ सौ एक, वासुपूज्य छह सौ एक, विमलनाथ छह हजार, अनन्तनाथ सात हजार, सुपाश्र्वनाथ पाँच सौ, पद्मप्रभ तीन हजार आठ सौ,वृषभनाथ दश हजार और शेष तीर्थंकर एक-एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए हैं ।।२८३-२८५।।
(उत्तरपुराण पृ. १०)