समेतमेव सम्यक्त्वज्ञानाभ्यां चरितं मतम्।
स्यातां विनापि ते तेन गुणस्थाने चतुर्थके।। ५४३।।
सम्यक्चारित्र—सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान से सहित ही होता है परन्तु सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान चतुर्थगुणस्थान में सम्यक्चारित्र के बिना भी होते हैं।।
(उत्तरपुराण पर्व, ७४ पृ. ४८०)