जिनेन्द्रपितरौ ततो धनपतिः सुरेन्द्राज्ञया स्वभक्तिमरतोऽपि च स्वयमुपेत्य तीर्थोदवै:।
शुभैःसमभिषिच्य तौ सुरभिपारिजातोद्भवैः सुगन्धवरभूषणैर्भुवनदुर्लभैःप्रार्चयत्।।१।।
तदनन्तर इन्द्र की आज्ञा और अपनी भक्ति के भार से कुबेर ने स्वयं आकर शुभ तीर्थजल से भगवान् के माता-पिता का अच्छी तरह अभिषेक किया और मनोज्ञ कल्पवृक्षों से उत्पन्न अन्यजन दुर्लभ सुगन्ध और उत्तमोत्तम आभूषणों से उनकी पूजा की।।१।। (हरिवंशपुराण सर्ग ३८ पृ. ४७८)